छठ पूजा:सूर्य और उनकी पत्नियों की उपासना का पर्व है

कार्तिक छठ, सूर्य षष्ठी अथवा छठ पूजा Chhat Puja का पर्व मनाने की परम्परा रामायण और महाभारत काल दोनों में ही मिलती है। वर्तमान में यह पर्व बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तरप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों तथा नेपाल के तराई क्षेत्र में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। साल में दो बार चेत्र तथा कार्तिक मास में सूर्य षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। इस दौरान सूर्य की उदय होते हुए और अस्त होते हुए, दोनों ही रूपों में पूजा की जाती है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। इसलिए छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्ध्य देकर दोनों का नमन किया जाता है। सूर्य षष्ठी क्यो मनाई जाती है? इस संबंध में कई कथा प्रचलित है। 

छठ पूजा कथा एक: राम ने किया था राजसूर्य यज्ञ


विजयादशमी के दिन लंकापति रावण के वध के बाद दिपावली के दिन भगवान श्री राम अयोध्या पहुंचे थे। ऋषि—मुनियों ने राम को रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए राजसूय यज्ञ करने की सलाह दी। इस यज्ञ के आयोजन के लिए अयोध्या में ऋषि मुग्दल को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था। कहा जाता है कि मुग्दल ऋषि ने इस यज्ञ की सफलता के लिए मां सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने के लिए कहा था। माता सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर उनकी आज्ञा के अनुसार छह दिनों तक भगवान भानू की उपासना की। तब से षष्ठी पर्व मनाने की परम्परा शुरू हो गई। 


छठ पूजा कथा दो: राजा प्रियवंद दंपति को हुई संतान प्राप्ति


प्राचीन काल में प्रियवंद नामक राजा हुए थे। इनकी पत्नी का नाम मालिनी था। राजा प्रियवंद सुखपूर्वक जीवन यापन कर रहे थे। प्रजा भी इनसे काफी खुश थी लेकिन, एक दु:ख इन्हें परेशान किए रहता था। दरअसल इनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन महर्षि कश्यप ने उन्हें यज्ञ करने के लिए कहा। राजा ​प्रियवंद और मालिनी ने यज्ञ किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन, यह संतान मृत हुई। इस घटना से विचलित राजा-रानी प्राण छोड़ने का निर्णय लिया और नदी की ओर चल दिए। उसी समय भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी। षष्ठी ने उन्हें व्रत का तरीका बताया। राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। और तभी से छठ पूजा होती है।

छठ पूजा कथा तीन:  इस व्रत के करने से हुई थी द्रोपदी की मनोकामना पूर्ण


एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में पाण्ड़व जुएं में राजपाट और द्रोपदी को हार गए थे तब द्रोपदी ने छठ का व्रत किया और भगवान सूर्य की उपासना की। इससे द्रोपदी की मनोकामना पूरी हुई और उन्हें राजपाटी वापस मिल गया। तब से यह व्रत किया जाता है।


छठ पूजा कथा: कर्ण को मिला था भगवान सूर्य से वरदान


छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। एक मान्यता के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्‍य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।


छठ पूजा कथा : सूर्य और उनकी बहन की होती है पूजा

एक अन्य मान्यता के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है।

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