सफला एकादशी: यह व्रत करने से मिलेगी सफलता


प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। लेकिन जिस वर्ष अधिकमास अथवा मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़ कर 26 हो जाती है। पौष मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के कार्य सफल होते है। इस कारण इसे सफला एकादशी कहा जाता है। सफला एकादशी का भगवान विष्णु यानि श्री नारायण की पूजा अर्चना की जाती है।


वर्ष 2019 में सफला एकादशी का व्रत

सफला एकादशी का व्रत इस साल यानि 2019 में 1 जनवरी को है। इस दिन सफला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के कार्य सफल होते है। इस कारण इसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है।

सफला एकादशी व्रत और विधि (Saphala Ekadashi Vrat Vidhi )


सफला एकादशी का व्रत को करने वाले को चाहिए कि प्रातः स्नान करके पुष्प, धूपबत्ती, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार तथा लौंग आदि से श्री नारायण जी का विधिवत पूजन करे। संध्या को दीपदान व रात्रि जागरण करे। इससे भगवान प्रसन्न होते है। अन्य एकादशी व्रत की तरह इस दिन उपवास रखना चाहिए। 

सफला एकादशी की कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha) 

बात प्राचीन काल की है। चम्पावती नामक नगर था और महिष्मत वहां का राजा था। राजा के चार पुत्र थे जिनमें सबसे छोटा पुत्र लुम्पक दुष्ट और पापी स्वभाव का था। वह अपने पिता का धन बुरे कामों पर खर्च करता था। राजा और रिश्तेदारों ने उसे खूब समझाया लेकिन, वह अपनी आदतों से बाज नहीं आया। परेशान राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। वह भटकता हुआ जंगल में पहुंचा और वहां वन्यप्राणियों को मारकर उनका मांस भक्षण करने लगा। एक बार उसे शिकार नहीं मिला। ऐसी स्थिति में तीन—चार दिन बीत गए। तभी उसे जंगल में साधु की कुटिया नजर आई और वह वहां पहुंचकर भोजन तलाशने लगा लेकिन,उस दिन 'सफला एकादशी' होने के कारण उसे कुटिया में कुछ भी खाने को नहीं मिला। अनजाने में उसका भी सफला एकादशी का व्रत हो जाता है। इससे भगवान उस पर प्रसन्न हो जाते है।

दूसरी तरफ साधु ने उसका सत्कार किया और वस्त्र आदि दिए। साधु का यह बर्ताव देखकर लुम्पक का व्यवहार बदल गया। उसने सोचा, 'यह कितना अच्छा मनुष्य है। मैं तो इसके यहां चोरी करने आया था, पर इसने मेरा सत्कार किया।' उसे अपनी भूल का अहसास हो गया। वह क्षमा याचना करता हुआ उस साधु के चरणों में गिर पड़ा और स्वयं ही उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया।

साधु के आदेश से लुम्पक वहीं रहने लगा। अब वह साधु द्वारा लाई भिक्षा से जीवन यापन करता। धीरे-धीरे उसके चरित्र के सारे दोष दूर हो गए। वह भी नियमित 'एकादशी' का व्रत करने लगा। जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट किया। दरअसल साधु के वेश में स्वयं महाराज महिष्मत थे। पुत्र को अच्छे रास्ते पर चलता देख वह प्रसन्न हुए और उसे राजमहल ले आए और सारा राजकाज उसे सौंप दिया। प्रजा उसके चरित्र में परिवर्तन देखकर चकित रह गई। लुम्पक आजीवन 'सफला एकादशी' का व्रत तथा प्रचार करता रहा।





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