मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा कहते है क्योकि...

हर महीने पूर्णिमा व्रत का विधान है। मार्गशीर्ष अथवा अगहन मास में आने वाली पूर्णिमा का व्रत सभी कामनाओं की सिद्धि करने वाला माना जाता है। इस व्रत के करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसे बत्तीसी पूर्णिमा कहते है। दरअसल इसके पीछे मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा का व्रत करने और दान करने का फल 32 गुणा मिलता है। इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा (Battisi Purnima) या बत्तीसी पूनम (Battisi poonam) भी कहा जाता है।  

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत विधि (Margh Shirsh Purnima Vrat)

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन स्नानदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा अथवा चित्र की विधि—विधान से पूजा करनी चाहिए। पुष्य योग होने पर पूजा से पहले पीली सरसों का उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए और नए वस्त्र धारण करना चाहिए। विधि विधान से पूजा के बाद ब्राह्मण को दान करना चाहिए। कार्तिक मास की तरह कई जातक इस महीने भी प्रतिदिन प्रात:काल नदी स्नान का व्रत धारण करते है।


भजन—कीर्तन होता है

धर्मग्रंथों के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथी से सतयुग का प्रारम्भ माना जाता है। ऐसे में इसे पावन महीना माना जाता है। मार्गशीर्ष महीने में गंगा के घाटो पर तो भक्त मंडलिया प्रतिदिन सुबह के समय भजन तथा कीर्तन कर पुण्य कमाते है।
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