रंगभरी एकादशी: व्रत महत्व और काशी विश्वनाथ से इस एकादशी का क्या हैं कनेक्शन, जानिए

रंगभरी एकादशी को आमला एकादशी के नाम से भी जानते है। रंगभरी एकादशी के साथ काशी में होली उत्सव की शुरुआत होती है। इस मौके पर विश्वनाथ मंदिर में खास आयोजन होता है।

Rangbari Ekadashi in kashi vishwanath 

 

साल में कुल 24 एकादशी होती है। इनमें फाल्गुन शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को आमला एकादशी कहते है। 2018 में रंगभरी एकादशी 26 फरवरी, सोमवार को है।

अन्य एकादशियों की भांति ही रंगभरी एकादशी का व्रत होता है। ​इस दिन आंवला पूजन का विशेष महत्व है। यथा संभव आंवला दान करना चाहिए। व्रत करने और आंवले की पूजा से उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस कारण इसे आमला एकादशी भी कहते है। 

दरअसल, ये होली से ठीक पहले आती है और इस दिन से मंदिरों में होली उत्सव की शुरुआत होती है। फागोत्सव में कहीं फूलों की होली खेली जाती है तो कहीं गुलाल-अबीर से।    

काशी विश्वनाथ में खास है रंगभरी एकादशी 


उत्तर प्रदेश के काशी में रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है। जिस तरह होलाष्टक से ब्रज में होली उत्सव शुरू होता है, उसी तरह काशी में रंगभरी एकादशी से होली पर्व की शुरुआत होती है। 


बाबा विश्वनाथ की नगरी में ये पर्व देखने के लिए देश के कौने-कौने से बाबा के भक्त रंगभरी एकादशी पर काशी आते है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और पार्वती का​ विवाह संपन्न हुआ था। विवाह के बाद शिव और पार्वती पहली बार काशी नगरी आए थे, उस दिन रंगभरी एकादशी थी।​ शिव जी के विवाह के बाद काशी आने पर खुशी मनाने की परंपरा आज भी काशी निवासी मनाते है। इस दिन यहां जमकर रंग-गुलाल उड़ाया जाता है। चारों तरफ हर-हर महादेव के जैकारे लगते है। 

काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित महंत आवास से बाबा विश्वनाथ की गौना-बरात निकाली जाती है। जिसमें बाबा विश्वनाथ को विशेष पौशाक पहनाई जाती है और श्रंगार किया जाता है। बाबा विश्वनाथ की रजत प्रतिमा को राजशाही पगड़ी और धोती-कुर्ता एवं दुपट्टा पहनाया जाता है।


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