क्यों किया जाता है श्राद्ध और क्या फल मिलता है

श्राद्ध क्यों, कैसे और कब करना चाहिये? श्राद्ध कब से शुरू होंगे? श्राद्ध पक्ष की महत्वपूर्ण तिथियों के बारे में जानकारी दे रहे है जानें-मानें ज्योतिषाचार्य डॉ. योगेश व्यास...


हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष काफी महत्वपूर्ण मानें जाते है। भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन माह की अमावस्या तक श्राद्ध कर्म होगे। इस साल 13 सितंबर से श्राद्ध शुरू होंगे और 28 सितंबर को श्राद्ध समाप्त होंगे। आमतौर पर श्राद्ध पक्ष में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है। श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पुण्यात्मायें सूक्ष्म रूप में पृथ्वी पर आती है। ये पितृ परिजनों के तर्पण को स्वीकार कर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। अपने पूर्वजों के प्रति स्नेह, विनम्रता, आदर व श्रद्धा भाव से किया जाने वाला कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। यह पितृ ऋण से मुक्ति का भी मार्ग है। 

सबसे पहले यह सवाल आता है कि श्राद्ध कब निकाला जाये? 


धार्मिक मान्यता के अनुसार, निधन की तिथि के दिन श्राद्ध निकाला जाता है। उदाहरण के तौर पर हिंदू कलेण्डर के हिसाब से किसी की मृत्यु द्वितीया तिथि को हुई है तो श्राद्ध पितृपक्ष की द्वितीय तिथि को निकाला जायेगा। पूर्णिमा और अमावस्या को शामिल करते हुये श्राद्ध पक्ष 15 या 16 दिन के होते है। 

श्राद्ध के दिन क्या करें? 

  • जिस पुण्यात्मा का श्राद्ध है, उनके निमित्त अग्नि पर भोग लगाना चाहिये। उसके बाद गाय तथा कौएं को भोजन दें। इस दिन ब्राह्मण अथवा ब्राह्मणी को भोजना करना चाहिये। इसके पश्चात अपने सामर्थ्य के मुताबिक दान करना चाहिये। 
  • प​रिवार की बहन, बेटियों, भांजे, दोहिता आदि के साथ भोजन करना चाहिये। मान्यता है कि कौए के रूप में हमारे पूर्वज ही भोजन करते है। कौए को भाजन कराने से सभी तरह का पितृ और कालसर्प दोष दूर होते है। 
  • जो पितृ, शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। 
  • पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा।                             
  • यदि श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।
  • श्राद्ध कर्म दिन में करना चाहिये। रात में श्राद्ध निषिध माना गया है। 
  • श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है। श्राद्ध में केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।
  • ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।


श्राद्ध पक्ष 2019 की महत्वपूर्ण तिथियां

13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध                           
14 सितंबर- प्रतिपदा                       
15 सितंबर-  द्वितीया
16 सितंबर- तृतीया                                   
17 सितंबर- चतुर्थी                          
18 सितंबर- पंचमी महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी                                      
20 सितंबर- सप्तमी                          
21 सितंबर- अष्टमी
22 सितंबर- नवमी                                   
23 सितंबर- दशमी                           
24 सितंबर- एकादशी
25 सितंबर- द्वादशी                                 
26 सितंबर- त्रयोदशी,  मघा श्राद्ध        
27 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
28 सितंबर- पितृ विसर्जन, सर्वपितृ अमावस्या !! 

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