भोले को प्रसन्न करने के लिए करें शिव रुद्राष्टकम का जाप

सोमवार, प्रदोष, सावन मास और महाशिवरात्रि भोले शंकर की पूजा के खास दिन हैं। इन दिवस और अवसर विशेष पर शंकर को प्रसन्न करने के लिये कई तरह के जाप, अनुष्ठान, मंत्र पाठ, स्तुति पाठ करते है। इनमें से है शिव रुद्राष्टकम। मान्यता है कि​ शिव रुद्राष्टकम के पाठ से भगवान शिव प्रसन्न होते है और मनवांचित फल प्रदान करेते है। यदि रुद्राष्टकम का पाठ रोजाना किया जाये तो सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है। 
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जगती छन्द में लिखे गये इस स्रोत की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। भगवान शिव की स्तुति निमित्त इस स्रोत का उल्लेख रामचरित मानस के उत्तर कांड में मिलता है। इसमें मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी को प्रमाण किया गया है। 


नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम् ।
अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
 प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी ।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्माथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम् ।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम्  ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
 जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये, ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति  ॥

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