रविवार भगवान सूर्य देव की पूजा का वार है। सुख—समृद्धि, व्यापार में उन्नति, स्वस्थ्य जीवन तथा जीवन की सुरक्षा के निमित्त भगवान सूर्यदेव की आराधना की जाती है। संतान प्राप्ति के लिए भी रविवार का व्रत करने की परम्परा है। मान्यता है कि रविवार का व्रत करने और सूर्य भगवान की कथा सुनने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। कुष्ठ रोग समेत विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति निरोगी होता है।
व्रत के दिन ये करें
सूर्योदय से पूर्व उठे और स्नान आदि से निवृत्त होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
स्वर्ण निर्मित भगवान सूर्य की मूर्ति या चित्र की विधि-विधान से गंध-पुष्पादि से पूजा करें।
पूजा में लाल रंग के पुष्पों का उपयोग करना चाहिए।
पूजन के बाद व्रतकथा सुनें एवं आरती करें।
सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए सूर्य को जल चढ़ाए।
वैसे भी उदय होते भगवान सूर्य को रोजाना जल चढ़ाने से व्यापार में वृद्धि होती है।
सात्विक भोजन करें। नमक और तेल युक्त भोजन नहीं करना चाहिए।
जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य पीड़ित अवस्था में हो, उन व्यक्तियों के लिये रविवार का व्रत करना विशेष रुप से लाभकारी रहता है।
रविवार का व्रत कब से करें
रविवार का व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारम्भ करके कम से कम एक वर्ष और अधिक से अधिक बारह वर्ष के लिए किया जा सकता है। रविवार के व्रत के विषय में यह कहा जाता है कि इस व्रत को सूर्य अस्त के समय ही समाप्त किया जाता है। अगर किसी कारणवश सूर्य अस्त हो जाये और व्रत करने वाला भोजन न कर पाये तो अगले दिन सूर्योदय तक उसे निराहार नहीं रहना चाहिए। अगले दिन भी स्नानादि से निवृ्त होकर, सूर्य भगवान को जल देकर, उनका स्मरण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
रविवार व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर में एक बुढिया रहती थी। वह प्रत्येक रविवार को प्रात: स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर शुद्ध करती थी और इसके बाद भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। इससे उसके घर में धन—धान्य की कभी कमी नहीं रही और वह सुख पूर्वक जीवन जी रही थी। वह जिस घर से गोबर लाती थी उसमें रहने वाली एक अन्य बुढ़िया ने सोचा कि यह मेरी गाय का गोबर लेकर जाती है। इसलिए उसने गाय का घर के अन्दर बांधना शुरू कर दिया। इससे बुढ़िया को घर लीपने के रविवार को गोबर नहीं मिला। घर शुद्ध नहीं करने के कारण उसने भोजन नहीं बनाया। भगवान को भी भोग नहीं लगा। इस तरह उस रविवार को बुढ़िया का निराहार व्रत हो गया।
रात्रि में भगवान सूर्य देव ने उसे स्वप्न में आकर इसका कारण पूछा। बुढ़िया ने सब कुछ बता दिया। तब भगवान ने उसकी समस्या का हल करने के लिए मनोकामना पूरी करने वाली गाय का वरदान दिया। भगवान ने बुढ़िया को मोक्ष देने का भी वरदान दिया। बुढ़िया सुबह उठी तो आंगन में सुंदर गाय और बछडा बंधा हुआ मिला। उसने देखा कि गाय गोबर की जगह सोना देती है। घर में धन—सम्पदा बढ़ गई।
पड़ोस में रहने वाली बुढ़िया ने इसका कारण पूछा तो उस भोली बुढ़िया ने सारी बात बता दी। पड़ोसन ने चालाकी की। वह सुबह जल्द उठती और गाय का सोने वाला गोबर ले जाती। बेचारी बुढ़िया इसका कारण समझ नहीं पाई लेकिन, भगवान को उस पर दया आ गई। उन्होंने एक दिन जोर से आंधी चला दी। इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया। सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा। वह खुश हो गई। अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी।
उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी। राजा ने यह सुनकर अपने दूतों से गाय मंगवा ली। बुढ़िया दु:खी हो गई और उसने भगवान को प्रसन्न करने के लिए अखंड व्रत रखा। उधर, राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया। भगवान ने राजा को स्वप्न दर्शन दिए और गाय लौटाने तथा रविवार का व्रत करने के लिए कहा। राजा ने वैसा ही किया। साथ ही पड़ोसन को दण्ड दिया। उस दिन से राजा ने सभी नगर वासियों को रविवार का व्रत रखने का आदेश दिया। इससे राज्य में सुख—समृद्धि बढ़ने लगी और सभी प्रसन्नता पूर्वक रहने लगे।
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