दुनिया में गणेशजी की चार स्वयंभू मूर्तियां, पहली यहां पर है...

दुनिया में गणेशजी की चार स्वयंभू प्रकट मूर्तियां है। इनमें से पहली मूर्ति राजस्थान में है। सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर किले में प्रथम गणेश जी का मंदिर है। इसे त्रिनेत्र गणेश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

राजधानी जयपुर से त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर की दूरी करीब 142 किलोमीटर है। सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी 13 किलोमीटर है। यह मंदिर 1579 फुट की उंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पर्वतमालाओं में स्थित है। रणथंभौर में गणेश चतुर्थी के मौके पर मेला आयोजित होता है। इस मेले में देश के विभिन्न इलाकों से भक्त पहुंचते है। इस दौरान यहां कई पदयात्राएं भी पहुंचती है। इस मंदिर में गणेश जी अपनी दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि तथा पुत्र शुभ् और लाभ के साथ विराजमान है।  

भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को भक्तों की भीड़ के चलते रणथम्भौर की अरावली व विंध्याचल पहाड़ियाँ गजानन के जयकारों से गुंजायमान रहती है। भगवान त्रिनेत्र गणेश की परिक्रमा 7 किलोमीटर के लगभग है। 

इस मंदिर को चिट्ठी वाले गणेश जी भी कहा जाता है। दरअसल, गणेश जी के भक्त घर में शादी-विवाह होने पर उसक निमंत्रण कार्ड यहां आवश्यक रूप से भेजते है। मान्यता है कि इससे भगवान उनके घर आते है और सभी काम बिना किसी रुकावट के पूरे होते है। इसके साथ ही कई भक्त अपनी समस्याएं भी भगवान को लिखकर भेजते हैं। 

गणेश जी के त्रिनेत्र होने का रहस्य


लोक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी स्वरूप सौम पुत्र गणपति को सौंप दिया था।  इस तरह महादेव की सारी शक्तियां गजानन में निहित हो गई। रण​थंभौर में गणपति का इसी त्रिनेत्री रूप की पूजा होती है। गणेश जी के इस स्वरूप का​ वर्णन सत्ययुग और द्वापर युग में भी मिलता है। 

भगवान कृष्ण और रुकमणी के विवाह पर गणेश जी बुलावा देना भूल गए। इस पर गणेश जी को क्रोध आ गया। उनके वाहन मूषक ने कृष्ण के रथ के आसपास धरती को खोद दिया। श्रीकृष्ण जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और वे गणेश जी के पास पहुंचे। कहते है कि रणथंभौर में गणेश जी का मंदिर उसी स्थान पर है जहां कृष्ण जी ने उन्हें मनाया था। इससे पहले सत्ययुग में भगवान श्रीराम ने भी लंका जाने से पहले गणेश जी के इसी रूप का पूजन किया था। इसलिए इसे प्रथम गणेश मंदिर कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार विक्रमादित्य भी गणेश के परम भक्त् थे और वे हर बुधवार को यहां दर्शन के लिए आते थे।  


राजा हमीर ने बनवाया था मंदिर

वर्तमान मंदिर राजा हमीर ने बनवाया था। हमीरदेव चौहान और अलाउद्दीन खिलजी के बीच 1299-1301 ईस्वी के बीच रणथम्भौर में लड़ाई हुई। इस दौरान खिलजी की सेना किले में प्रवेश नहीं कर पाई और वह करीब नौ महीने तक बाहर डेरा डाले रही। उधर, किले में राशन समाप्त होने लगा तो हमीर देव भगवान की शरण में पहुंचे। रात को गणेश जी ने स्वप्न में आकर इस स्थान के बारे में बताया। राजा अगले दिन वहां पहुंचे तो गणेश जी स्वयंभू प्रतिमा नजर आई। इसके बाद राजा ने वहां मंदिर बनवाया। तब यह यहां पूजा होने लगी। 

दुनिया में गणेश जी के केवल चार मंदिर हैं जहां गणेश जी की प्रतिमा स्वयंभू प्रकट है। सबसे पहली प्रतिमा रणथंभौर में है। इसके अतिरिक्त तीन अन्य प्रतिमाएं सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर, मध्यप्रदेश में विराजमान है।  

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