अनंत चतुर्दशी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। जैसा कि नाम से साफ अनंत यानि जिसका अंत नहीं हो। मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से अनंत सुख मिलता है। इस दिन भगवान अनंत की पूजा से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है। उन्हें रक्षा सूत्र बांधा जाता है।
चलिए, अब जानते है कि इस अनंत चतुर्दशी की पूजा पहली बार कब हुई। अनंत चतुर्दशी के व्रत का महत्व सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था। महाभारत काल में पाण्डव अपना सारा राजपाट जुएं में हार गए थे। वे वन-वन भटकते हुए अत्यधिक कष्टदायक जीवन बीता रहे थे। द्रोपदी की प्रार्थना पर कृष्ण को उन पर दया आ गई।
उन्होंने पाण्डवों को भगवान अनंत की पूजा करने और अनंत चतुदर्शी का व्रत करने को कहा।कृष्ण के कहे अनुसार, पाण्डव पुत्रों और द्रोपदी ने विधि विधान से अनंत चतुर्दशी का व्रत किया। इसका असर यह रहा कि वे जल्द ही कष्ट मुक्त हो गए।
कैसे करें अनंत चतुर्दशी का व्रत
प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर इस अनंत चतुर्दशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार तो यह संकल्प पवित्र नदी या तालाब के तट पर जाकर करने का उल्लेख है। आजकल ऐसा संभव नहीं हो पाता। इसलिए घर में कलश स्थापित करके ये सकंल्प लिया जा सकता है। कुछ लोग कलश पर शेषनाग के ऊपर लेटे भगवान विष्णु जी की मूर्ति या फोटो भी स्थापित करते है।
इसके बाद चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र (डोरा) को खीरा से लपेटा जाता है और उसे जलपात्र में ऐसे घुमाते है जैसे समुद्र मंथन किया गया था। मान्यता है कि इस मंथन से भगवान अनंत मिले थे।
मंथन के बाद ॐ अनंतायनम: मंत्र से भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूरी विधि से पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद यह अनंत सूत्र मंत्रोच्चार के साथ पुरुष को अपने दाहिने हाथ में और स्त्री अपने बाएं हाथ में बांधना चाहिए। इसके व्रत कथा करनी चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराकर एक समय भोजन करना चाहिए। कुछ लोग इन दिन नमक युक्त भोजन नहीं करते है।
कुछ परिवारों में अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा सुनने से पहले कच्चे सूत पर हल्दी, रोली लगाकर डोरा बनाया जाता है।
अनंत सूत्र बांधने का मंत्र
अनंन्त सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव.अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपायनमोनमस्ते.
अनंत चतुर्दशी का व्रत कथा
प्राचीन समय में कौण्डिन्य नामक मुनि थे। एक दिन उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी ने बाएं हाथ पर अनंत सूत्र बांध रखा है। यह देखकर मुनि ने सोचा कि उनकी पत्नी ने उन्हें वश में करने के लिए ये सूत्र बांध रखा है। उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा-क्या तुमने मुझे अपने वश में करने हेतु यह सूत्र बांधा है?
उनकी पत्नी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया जी नहीं, यह भगवन अनंत का पवित्र सूत्र है। मुनि अपनी पत्नी की बात सहमत नहीं हुए और उन्हे लगा कि पत्नी झूठ बोल रही है। क्रोध में आकर मुनि ने अनंतसूत्र को तोड़ दिया और उसे आग में नष्ट कर दिया। इससे अनंत भगवान नाराज हो गए और थोड़े ही समय में उनकी सारी धन और संपत्ति नष्ट हो गई और संकट में फंस गए।
उधर, कौण्डिन्य मुनि को भी अपने किए पर पछतावा हुआ और उन्होंने प्रायश्चित करने का प्रण लिया। वे भगवान अनंत से क्षमा मांगने के लिए वन में चले गए। बहुत खोजने पर भी जब अनंत भगवान का दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने प्राण त्यागने का तय किया। तभी एक ब्राह्मण ने कौण्डिन्य मुनि को रोका और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनंत देव के दर्शन कराए।
भगवान ने कौण्डिन्य मुनि से कहा की तुमने जो अनंतसूत्र का अपमान किया था, यह सब उसी अपमान का फल है। इसका प्रायश्चित करने का लिए तुम 14 वर्ष तक निरंतर अनंत-व्रत का पालन करो। इस व्रत को करने के बाद तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें फिर से प्राप्त हो जाएगी और तुम फिर से सुखी जीवन बिता सकोगे। कौण्डिन्य मुनि ने 14 वर्ष तक अनंत-व्रत करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।
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