सवाई माधोपुर जिला रणथंभौर नेशनल पार्क के लिए फेमस है। इसे टाइगर का सबसे सुरक्षित घर माना जाता है। इस जिले में एक और प्रसिद्ध मंदिर है-चौथ माता का। यह मंदिर सवाई माधोपुर से करीब 22 किमी दूर बरवाड़ा गांव में है। इसलिए यह स्थान चौथ का बरवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां तक आप ट्रेन, बस या निजी साधन से पहुंच सकते है।
चौथ माता का मंदिर यहां एक पहाड़ी पर स्थित है। संगमरमर का यह मंदिर राजपूत शैली में बना हुआ है। समुद्र तल से इसकी उंचाई करीब 1100 फुट बताई जाती है। पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए पथरीला पहाड़ी रास्ता था। अब सीढ़ियां बन है और उस पर फाइबर की छत से दर्शनार्थियों क लिए छाया का इंतजाम किया गया है। रात्रि विश्राम के लिए नीचे कई धर्मशालाएं है। बारिश में चारों ओर हरियाली छा जाती है और माहौल रमणीय हो जाता है।
स्थानीय मान्यता के अनुसार बरवाड़ा गांव में शक्तिगिरी पर्वत पर चौथ माता मंदिर का निर्माण महाराज भीमसिंह चौहान ने संवत 1451 में कराया था। उन्होंने यहां अपने पिता की स्मृति में छतरी बनवाई। मंदिर में शिवलिंग की भी स्थापना करवाई। महाराजा भीमसिंह चौहान ने यहां एक तालाब का भी निर्माण कराया। इस मंदिर में माता जी के साथ गणेश जी और भैरव जी की प्रतिमा स्थापित है।
साल में चार बार आयोजित होता है मेला
हिंदू वर्ष के अनुसार, हर महीने दो चतुर्थी आती है और इस तरह साल में कुल 24 चतुर्थी आती है। अधिमास और मलमास की स्थिति में इनकी संख्या अधिक और कम हो जाती है। परंतु चौथ के बारवाड़ा स्थित चौथ माता के मंदिर में साल में चार बार मेला आयोजित होता है। इनमें सबसे बड़ा मेला माघ मास में आयोजित होता है। माघ माह सुदी चौथ से अष्टमी तक यह मेला आयोजित होता है। इसके साथ भाद्रपद, वैशाख तथा कार्तिक में करवा चौथ को भी चौथ माता का मेला आयोजित होता है। इन मेलों में लाखों भक्त आते हैं। देखा जाए तो दर्शनार्थियों की संख्या के आधार पर यह मंदिर राजस्थान के प्रमुख 11 मंदिरों में शामिल है। मन्दिर मे अखंड ज्योत जल रही है। इस अखंड ज्योति के बारे में मान्यता है कि यह सैकड़ों साल से चल रही है।
चौथ माता के मंदिर की जानकारी (About Chauth Mata Temple )
चौथ का बरवाड़ा को प्राचीन काल में "बाड़बाड़ा" नाम से जाना जाता था जो कि रणथम्भौर साम्राज्य का ही एक हिस्सा रहा है, इस क्षेत्र के प्रमुख शासकों में बीजलसिंह एवं भीमसिंह चौहान प्रमुख रहे हैं। प्राचीन काल में यहां चौरू एवं पचाला का घनघोर जंगल था, हालांकि ये अब यहां बसावट हो चुकी है।
मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में चौरू के जंगल में एक प्रकाश पुंज प्रकट्यय हुआ जिसकी वजह से दारूद भैरो का विनाश हुआ। उसके बाद यहां चौथ माता की स्वयं भू प्रतिमा प्रकट हुई। इसके चमत्कारों से यहां आदिवासियों में माता के प्रति आस्था बढ़ती गई। वे अपने कुल के आधार पर चौर माता के नाम से इसकी पूजा करने लगे, बाद मे चौर माता का नाम धीरे-धीरे चौरू माता एवं आगे चलकर यही नाम अपभ्रंश होकर चौथ माता हो गया। वर्षों बाद चौथ माता की प्रतिमा चौरू के विकट जंगलों से अचानक विलुप्त हो गई, बाद में यह प्रतिमा बरवाड़ा क्षेत्र की पचाला तलहटी में महाराजा भीमसिंह चौहान को स्वप्न में दिखाई दी।
Chauth Mata Temple, Chauth Ka Barwara, Sawai Madhopur, Rajasthan |
एक बार महाराजा भीमसिंह चौहान को रात में स्वप्न आया कि वह शिकार खेलने की परम्परा छोड़ रहे है। उन्होंने शिकार पर जाने का तय किया। इसके बाद वह जब शिकार पर जाने लगे तो उनकी पत्नी रत्नावली ने रोका।
भीमसिंह ने कहा कि "चौहान एक बार सवार होने के बाद शिकार करके ही नीचे उतरते हैं।" इस प्रकार रानी की बात को अनसुनी करके भीमसिंह चौहान अपने सैनिकों के साथ जंगल में चल दिए। अचानक उनकी नजर एक मृग पर पड़ी, वे उसके पीछे हो लिए। रात हो गई और सैनिक भी उनसे भटक गए। मृग भी नजरों से ओझल हो गया। राजा को प्यास लगी। आसपास पानी नहीं मिला तो वह मुर्छित होकर गिर पड़े। अचानक बारिश होने लगी। राजा को होश आया तो उन्होंने देखा कि उनके सामने वहीं प्रतिमा थी, जो उन्हें स्वप्न में दिखाई देती थी। उसी दौरान उन्हें वहां एक बालिका अंधकार भरी रात में स्वयं सूर्य जैसी प्रकाशमय नजर आई।
भीमसिंह कन्या को देखकर थोड़ा भयभीत हुआ और बोला कि हे बाला इस जंगल में तुम अकेली क्या कर रही हो? तुम्हारे मां बाप कहां पर है?
राजा की बात को सुनकर कन्या हंसने लगी और बोली, हे राजन! यह बताओ की तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं, इतना कहकर भगवती अपने असली रूप में आ गई। इतना होते ही राजा देवी के चरणों मं गिर पड़ा और माता से राज्य में निवास करने का वरदान मांगा। तब माता ने कहा कि वह उसके राज्य में रहेगी। माता ने जिस प्रतिमा को मंदिर बनवा कर स्थापित करने का आदेश दिया। इसके बाद संवत 1451 में आदिशक्ति चौथ भवानी की बरवाड़ा में पहाड़ की चोटी पर माघ कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से स्थापित किया। तब ये यहां चौथ माता की पूजा होती है।
भीमसिंह चौहान के लिए उक्त कहावत आज भी चल रही है:- चौरू छोड़ पचालो छोड्यों, बरवाड़ा धरी मलाण, "भीमसिंह चौहान कू, माँ दी परच्या परमाण। माता के अनेक चमत्कारों का उल्लेख मिलता है।
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