अहोई अष्टमी की कथा: इस वन्यजीव की सुरक्षा का संदेश देती है अहोई अष्टमी

अहोर्इ अष्टमी की पूजा के दौरान अहोई माता की कथा सुनी जाती है। अहोई अष्टमी का पर्व करवा चौथ से चार दिन बाद मनाया जाता है। अहोई अष्टमी कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। 
अहोर्इ अष्टमी की कथा में इस पर्व का महत्व बताया गया है। संतान की सुरक्षा के लिए यह व्रत किया जाता है। अहोई माता की तीन कथाएं प्रचलित है।  इन तीनों ही कथाओं में वन्यजीव सेही Indian crested porcupine की सुरक्षा को लेकर जोर दिया गया है। सेही संरक्षित वन्यजीव है और इसके शरीर पर कांटे होते है।   
Ahoi Ashtami Ki Katha सेही (Indian crested porcupine)

अहाई अष्टमी कथा Ahoi Ashtami Ki Katha


प्राचीन समय एक गांव में एक साहूकार रहता था। उसकी पत्नी चंद्रिका बहुत गुणवती थी। साहूकार की बहुत संताने थीं। एक दिन चन्द्रिका घर की लीपा-पोती के लिए मिट्टी लेने जाती है और कुदाल से मिट्टी खोदने लगती है। इस दौरान उसकी कुदाली के प्रहार से सेही के बच्चे की मौत हो जाती है। यह देखकर साहूकार की पत्नी बहुत दुख होता है।

कुछ दिनों बाद उसकी संतानें एक-एक करके मरने लगती हैं। बच्चों की अकाल मृत्यु से दम्पत्ति बहुत दुखी होते है। किसी ने उन्हें अहोई माता की पूजा और व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने अहाई माता की पूजा और व्रत किया। अहोई मां से अपने अपराध की क्षमा-याचना की। एक दिन अहोई मां प्रसन्न हो जाती है। अहोई माता साहूकार की पत्नी को उसकी शेष संतानों की दीर्घआयु का वरदान देती है। मान्यता है कि तभी से अहोई व्रत की परंपरा प्रचलित हो गई।

अहोई अष्टमी की कथा Ahoi Ashtami Ki Katha


दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक साहूकार रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं। उसके बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही मर जाते थे। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे। जब वह नि:संतान हो गए तो अपनी धन दौलत का त्याग कर बद्रिकाश्रम के पास जल के कुंड पर पहुंचते है और वहां अन्न-जल का त्याग करने का प्रण लेकर उपवास पर बैठ जाते हैं।

छह दिन इस तरह उपवास करते बीत जाते हैं। सातवें दिन अचानक एक आकाशवाणी होती है। आकाशवाणी के अनुसार, साहुकार के बच्चों की मौत उसके पूर्व जन्म के कर्मों के कारण हो रही थी। पाप मुक्ति के लिए साहूकार को अहोई माता का व्रत करने के लिए कहा गया। इसके बाद इस दम्पत्ति ने अहोई अष्टमी के दिन व्रत करना शुरू कर दिया। अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं।

Ahoi Ashtami Ki Katha

अहोई अष्टमी की कथा Ahoi Ashtami Ki Katha


एक साहूकार अपनी पत्नी, सात बेटे और सात बहुओं के साथ रहता था। एक बार दिवाली पर उसकी बेटी ससुराल से आई। दिवाली के आठ दिन पहले एक घटना होती है। साहूकार की बेटी घर को लीपने के लिए अपनी भाभियों के साथ मिट्टी लेने जाती है। इस दौरान ​कुदाली से स्याहु (साही, सेही) के एक बच्चे की मौत हो जाती है। सेही क्रोधित उसे नि:संतान होने का श्राप दे देती है। 

साहूकार की पुत्री क्षमा मांगती है तो सेही कहती है कि तेरी जगह और कोई श्राप भुगते तो तू इससे बच सकती है। वह अपनी भाभियों से श्राप भुगतने के लिए कहती है, लेकिन सब मना कर देती है। ननद की यह स्थिति देख सबसे छोटी भाभी को उस पर दया आ जाती है और वह कोख बंधवाने यानि ननद का श्राप लेने के लिए तैयार हो जाती है। 

छोटी भाभी के जो भी संतान होती वह इस श्राप के कारण सात बाद मर जाती। इस तरह उसके सात पुत्रों की मौत हो जाती है। एक पंडित ने इसके बचाव का रास्ता बताया। पंडित का कहा कि सुरही गाय की सेवा उसे लाभ हो सकता है। छोटी भाभी पंडितजी की बात मान कर सुरही गाय की सेवा करने लगती है।
सुरही प्रसन्न होती है और वह उसे सेही के पास ले जाती है। थकान के कारण दोनों रास्ते में विश्राम कर रही होती है। तभी साहूकार की छोटी बहू की देखती है कि एक सांप गरूड पंखनी के बच्चे को डंसने की कोशिश कर रहा है, वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी आ जाती है। खून बिखरा देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार​ दिया। वह चोंच से छोटी बहू पर हमला कर देती है। 

छोटी बहू उसे सारी बात बताती है, तो वह उस पर प्रसन्न हो जाती है और उसे सुरही सहित सेही के पास पहुंचा देती है। सेही छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होती है और उसे सात पुत्रों और समृद्धि का आशीर्वाद देती है। इस तरह अहोई का अर्थ एक “अनहोनी को होनी बनाना” है, जैसे कि साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
अष्टमी तिथि समाप्ति: 29 अक्टूबर 2021 शुक्रवार, 2:09 PM तक

Ahoi Ashtami 2021 shubh muhurat, अहोई अष्टमी 2021 शुभ मुहूर्त
पूजा का मुहूर्त: 28 अक्टूबर 2021, गुरुवार

समय: 05:39 PM से 06:56 तक
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