होली की अनोखी परंपरा: चूक गया तलवार का वार तो भुगतनी पड़ती है सजा

होली पर कई परम्पराएं प्रचलित हैं। आदिवासियों की होली पर जोश देखते ही बनता है, लेकिन उनके लिए ये पर्व शौर्य और साहस के प्रदर्शन का भी होता है। 

Holi:Gair Dance of Rajasthan

राजस्थान के मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में होली पर कुछ अनोखी परम्पराएं देखने को मिलती हैं। ये परंपराएं बेहद खतरनाक है। हालांकि समय के साथ इनमें बदलाव हुआ है। चलिए, आपको बताते है झीलों की नगरी उदयपुर के खैरवाड़ा में आदिवासी कैसे मनाते है होली। 

देशभर में होली दहन पूर्णिमा को होता है और इसके अगले दिन या​नि प्रतिपदा को धुलंडी मनाई जाती है। धुलंडी के दिन रंग-गुलाल उड़ाते है। चारों तरफ मस्ती होती है। खैरवाड़ा में कुछ अलग होता इस दिन। यहां के निवासियों के लिए ये दिन शौर्य प्रदर्शन का होता है। उनके इस प्रदर्शन को देखने के लिए राजस्थान ही नहीं गुजरात, मध्यप्रदेश से भी आदिवासी पहुंचते है। यहां पर होली दहन का कार्यक्रम स्थानीय लोकदेवी के स्थानक के आसपास होता है। 

परंपरागत गैर नृत्य होता 


तलवार और बंदूकें लिए आदिवासी युवाओं की टोली फाल्गुन के गीत गाते हुए स्थानक पर पहुंचती है। तलवार और बन्दूकों को लहराते हुए परंपरागत गैर नृत्य होता है। इसके बाद होलिका जलाई जाती है। इस दहकती होलिका के बीच डांडे को तलवार से काटने की अनोखी रस्म होती है। इसके लिए युवाओं में होड़ रहती है। जो इस डांडे को काट देता है उसकी वीरता का सम्मान होता है, लेकिन जो इसमें जो असफल रहते हैं उन्हें समाज के मुखियाओं द्वारा तय की गई सजा-जुर्माना भुगतना होता है। 

सजा के तौर पर आमतौर पर मंदिर में ही सलाखों के पीछे बन्द कर दिया जाता है। बाद में समाज द्वारा तय जुर्माना देने पर छोड़ा जाता है। हालांकि ये सब कुछ अब रस्म अदायगी के तौर पर होता है, क्योंकि ऐसे मामलों में कई बार मनमुटाव और तनाव पैदा हो जाता था।

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