बाहुबली के महामस्तकाभिषेक का कार्यक्रम 12 साल में एक बार होता है। इसे जैन महाकुंभ भी कहते है।
पवित्र तीर्थ स्थल श्रावणबेलगोला के विन्घ्यगिरि पर्वत पर भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक कार्यक्रम में 30 से 35 लाख लोग शामिल होते है।
बाहुबली के महामस्ताभिषेक की इस साल थीम रखी गई है- आपका सौभाग्य बुला रहा है। पिछली बार ये बाहुबली के महामस्तकाभिषेक का कार्यक्रम साल 2006 में हुआ था। उस वक्त यहां करीब 25 लाख लोग इस भव्य आयोजन में शामिल हुए थे। इस बार ये आयोजन 17 फरवरी से 25 फरवरी तक आयोजित हो रहा है। सात फरवरी को यहां आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुष्ठान कार्यक्रमों की शुरुआत की थी।
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से लगभग 155 किमी दूर श्रावणबेलगोला के विन्घ्यगिरि पर्वत पर भगवान बाहुबली की 57 फुट ऊंची प्रतिमा है। जानकारी के अनुसार, भगवान बाहुबली की भव्य मूर्ति का निर्माण 981 में सेनापति चामुंडराय द्वारा कराया गया था। बताया जाता है कि यह दुनिया में अखंड ग्रेनाइट से बनी सबसे बड़ी मूर्ति है। जैन अनुयायी इसे अपनी काशी और इस आयोजन को महाकुंभ मानते है। महामस्तकाभिषेक के दौरान यहां जैन साधु, मुनि, त्यागी, संत, माताएं सभी होती हैं। इस आयोजन में जैन ही नहीं बल्कि दूसरे धर्म, संप्रदाय के लोग भी हिस्सा लेते हैं। श्रद्धालु भारत ही नहीं यहां दूसरे देशों से भी आते है।
विष्णु के अवतार माने जाते है बाहुबली
जानकारी के अनुसार, गोम्मटेश्वर भगवान बाहुबली तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे। उन्हें भगवान विष्णु का भी अवतार माना जाता है और वे अयोध्या के राजा थे। उनकी दो रानियां थीं। एक रानी से 99 पुत्र और एक पुत्री तथा दूसरी से गोम्मटेश्वर भगवान बाहुबली तथा एक पुत्री सुंदरी थी। बाहुबली का अपने ही भाई भरत से उनके शासन, सत्ता के लोभ तथा चक्रवर्ती बनने की इच्छा के कारण दृष्टि युद्ध, जल युद्ध और मल्ल युद्ध हुआ था।
इसमें बाहुबली विजयी रहे, लेकिन उनका मन ग्लानि से भर गया और उन्होंने सब कुछ त्यागकर तप करने का निर्णय लिया। मानव जाति को अहिंसा और शांति के संदेश दिए, इसलिए उनके महामस्तकाभिषेक का जैन धर्मावलंबियों में बड़ा महत्व है।
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