शीतला माता की कथा सुनने के बाद एक और देवी की कथा सुनने की पंरपरा है। मान्यता है कि जब तक पथवारी माता की पूजा नहीं होती, शीतला माता की भी पूजा अधूरी रहती है।
शीतला सप्तमी अथवा शीतला अष्टमी पर शीतला माता की पूजा की जाती है। उनकी कहानी सुनी जाती है। शीतला माता की पूजा और कहानी सुनने के बाद पाल पथवारी की भी पूजा करनी चाहिए। कहा जाता है कि पथवारी की पूजा के शीतला माता की पूजा अधूरी रहती है।
पाल-पथवारी माता की पूजा
जहां शीतला माता का पूजा किया जाता है, वहीं पथवारी की पूजा होती है। पथवारी माता के लिए घर के बाहर से चार-पांच कंकर लाकर उनकी पूजा होती है। पूजा से पहले इन्हें अच्छी तरह धो लेना चाहिए। इसके बाद रोली, चावल, मोली, मूंग, मेहंदी, दूध, दही, राबड़ी, ठंडे व्यंजनों आदि का भोग लगाया जाता है।
पाल-पथवारी माता की कहानी
एक बार पाल माता, पथवारी माता और विनायक जी में खुद को बड़ा बताने की बात को लेकर झगड़ा हो गया। तीनों ही अपने-आप को एक-दूसरे से बड़ा साबित करने में लगे थे। विवाद बढ़ गया।
तभी वहां से एक ब्राह्मण का लड़का गुजरा। तीनों ने उसे रोक लिया और कहा कि तुम बताओं हम तीनों में से बड़ा कौन है?
लड़के ने कहा मैं अभी तो किसी जरुरी काम से जा रहा हूं, कल आकर इस बारे में बताउंगा।
लड़के ने घर आकर सारी बात अपनी मां को बताई। मां ने बेटे को सीख दी कि तुम किसी को भी छोटा मत बताना।
अगले दिन लड़का पाल, पथवारी और विनायकजी के पास पहुंचा। उसने कहा, पाल माता आप तो हर व्यक्ति से बड़ी हो। सभी व्यक्ति आते है, स्नान-ध्यान करते है और जाते समय पैर की ठोकर दे जाता है फिर भी आप किसी पर नाराज नहीं होती।
फिर पथवारी माता से कहा, पथवारी माता आप भी बड़े हो क्योकि कोई व्यक्ति कितने भी तीर्थ कर लें, धर्म ध्यान कर लें पर वापस आने पर आपकी पूजा किये बिना उसका कार्य पूर्ण नहीं होता।
लड़के ने गणेशजी से कहा, आप भी बड़े हैं, क्योंकि आप सभी देवताओं से पहले पूजनीय है। आपका ध्यान किए बिना कोई काम सिद्ध नहीं होता।
तीनों प्रसन्न हो गए और बोले, बालक तूने अपनी चतुराई से हम तीनों को ही बड़ा कर दिया। हमारा आशीर्वाद सदा तेरे साथ रहेगा। ऐसा कह कर उन्होंने जौ के कुछ दाने लड़के को दिए।
लड़का सोचने लगा– ये तो घाटे का सौदा रहा इतना अच्छा न्याय किया और बदले में इतने से जौ मिले।
लड़का घर पहुंचा और बेमन से जौ वाला अंगोछा कोने में रख दिया। मां अंगोछा समेटने लगी तो उसमें से चमचमाते हीरे मोती गिरने लगे। मां बोली ने लड़केे से सारी बात पूछी। मां-बेटों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दोनों बहुत खुश हुए और आनंद से रहने लगे।
हे भगवान ! पाल , पथवारी माता , विनायक जी महाराज ने जिस प्रकार ब्राह्मण के लड़के को आशीर्वाद दिया ऐसा आशीर्वाद सभी को देना।
पथवारी माता की कहानी दो
पथवारी माता की एक और कहानी प्रचलित है। इस कहानी के अनुसार, एक बार पथवार माता पाल पर बैठी थी। तभी दो व्यापारी वहां आए। इनमें एक के पास गाड़ी में नमक था और दूसरे के पास चीनी।
पथवारी माता ने दोनों से पूछा- तुम्हारे पास क्या है?
दोनों ने सोचा, पथवारी माता उनसे मांग ना ले, इसलिए झूठ बोला। चीनी के व्यापारी ने कहा मेरे पास नमक है और नमक के व्यापारी ने कहा, मेरे पास नमक है।
दोनों वहां से चले जाते है। थोड़ा आगे चलने के बाद दोनों ने अपना सामान जांचा तो हैरान रह गए। जिस व्यापारी के पास चीनी थी, वह नमक में बदल गई। जिस व्यापारी के पास नमक था वह चीनी में बदल गया।
यह देखकर दोनों व्यापारी झगड़ने लगे। एक-दूसरे पर सामान बदलने का आरोप लगाने लगे। तभी वहां एक व्यक्ति आया। उसने झगड़े का कारण पूछा। व्यापारियों ने सारी बात बता दी।
व्यक्ति ने पूछा– क्या रास्ते में तुम्हे कोई मिला था?
तो उन्होंने बताया कि पाल पर एक पथवारी नाम की बुढ़िया मिली थी।
इस पर सज्जन बोले की यह उसी बुढ़िया का काम लग रहा हैं तुम उसी के पास जाओ। तुम्हारा समाधान वहीं होगा। दोनों को अहसास हुआ की हमने झूठ बोला था शायद इसीलिए यह सब हुआ हैं।
दोनों पथवारी के पास गए और कहा हमने आपसे झूठ बोला हमें क्षमा कर दो हमारा सामान जैसा था वैसा ही कर दो। पथवारी जी दोनों को क्षमा किया और सामान वापस जैसा पहले था वैसा हो गया।
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