शीतला अष्टमी चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानि होली के आठवें दिन मनाई जाती है। इस दिन ठंडा भोजन किया जाता है। शीतला माता की कहानी सुनी जाती है और उनकी पूजा की जाती है।
शीतला अष्टमी यानि बास्योड़ा, बासोड़ा के एक दिन पहले रांधा पूआ होता है। सप्तमी के दिन दिन विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते है। राबड़ी, पुअे, पकौड़ी, गूंजी, मूनथाल, सकरपारे, नमकपारे आदि बनाए जाते है।
अगले दिन अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाती है। इन सब पकवानों को कंडवारे यानि मिट्टी की सराई में रखकर माता के भोग लगाया जाता है। इसे कंडवारा भरना कहते है। माता को रोली, चावल, मूंग, मेहंदी आदि चढ़ाई जाती है। पूजा के बाद ये सब माता के मंड यानि देवालय में चढ़ाएं जाते है। कहीं-कहीं पर कुम्हारी भी इन्हे लेने आती है।
शीतला माता की कहानी
शीतला माता की पूजा के बाद शीतला माता की कथा सुनी जाती है। इस कथा के अनुसार, एक बार एक गांव में बुढ़िया रहती थी। वह माता की भक्त थी और शीतला माता की नियमित पूजा करती थी।
अचानक एक दिन गांव में आग लग जाती है। बुढ़िया के घर को छोड़कर बाकी सबके घर जल जाते है। इस पर गांव वालों को आश्चर्य होता है। वे बुढ़िया के पास जाते है और पूछते है कि तुम्हारा घर जलने से कैसे बच गया?
बुढ़िया ने बताया कि वह शीतला माता की पूजा करती है और शीतला माता की कृपा से ही उसका घर बच गया। उसके बाद गांव वालों ने भी शीतला माता की पूजा करना शुरू किया। पूजा के दिन वे बासी खाना खाते। इससे गांव वाले सुख पूर्वक रहने लगे। माता की कृपा से उन पर उसके बाद कोई विपत्ति नहीं आई।
शीतला माता की कहानी-दो
शीतला माता की एक और कहानी बसोड़ा पर सुनाई जाती है। एक गांव में बूढ़ी कुम्हारी रहती थी। वह बसोड़े के दिन शीतला माता की पूजा करती थी और ठंडा खाना खाती थी। एक बार बासोड़ा पर गांव में एक बुढ़िया आई और वह घर—घर जाकर कहने लगी- 'कोई मेरी जुएं निकाल दो।'
सबने मना कर दिया। वह कुम्हारी बुढ़िया के घर पहुंची और आवाज दी- 'कोई मेरी जुएं निकाल दो।'
अंदर से बुढ़िया आई और बोली मैं निकालती हूं। कुम्हारी ने बुढ़िया की सब जुएँ निकाल दी। बुढ़िया असल में शीतला माता थी। उन्होंने खुश होकर बूढ़ी कुम्हारी को साक्षात दर्शन दिए और आशीर्वाद दिया।
उसी दिन किसी कारण से पूरे गांव में आग लग गयी, लेकिन कुम्हारी का घर सकुशल रहा। गांव वालों को इस पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने कारण पूछा तो बुढ़िया ने बताया कि शीतला माता की कृपा से ये हुआ है। इसके बाद गांव वाले भी शीतला अष्टमी की पूजा करने लगे। उस दिन वे बासी खाना खाते। इससे माता की कृपा गांव पर बनी रही।
0 comments:
Post a Comment