सबरीमाला मंदिर केरल में स्थित है। इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। इसके तहत अब यहां हर उम्र की महिलाएं सबरीमाला मंदिर में प्रवेश कर पूजा कर सकती है।
सबरीमाला मंदिर में पहले 10 साल की बच्चियों से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी। यह परंपरा यहां करीब 800 साल से चली आ रही है। हालांकि बीच-बीच में कुछ महिलाओं ने मंदिर दर्शन के दावे किए है। मंदिर की इस परंपरा को एक याचिका में चुनौती दी गई। केरल सरकार भी चाहती थी कि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश हो। लेकिन सबरीमाला मंदिर का संचालन करने वाला त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड अब कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी में है।
कौन है अयप्पा
सबरीमाला दक्षिण भारत का एक फेमस तीर्थस्थल है। यहां पर प्रसिद्ध अयप्पा मंदिर है। अयप्पा कौन है? इस बारे में धार्मिक मान्यता है कि वह शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) के पुत्र है। समुद्र मंथन के दौरान अमृत निकला था। यह अमृत असुरों के हाथ नहीं लगे, इसके लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप धरा था। उनका रुप देखकर असुर मोहित हो गए और इस दौरान उन्होंने देवताओं को अमृत पान करा दिया।
भगवान विष्णु का मोहिनी रुप इतना मोहक था कि भगवान शिव भी उन पर आसक्त हो गए। वे मोहिनी को पकड़ने के लिए पीछे दौड़ पड़े। आसक्ति की वजह से भगवान शिव का स्वयं पर काबू नहीं रहा और वीर्यपात हो गया। जहां ये वीर्य पड़ा वहां भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। इसलिए अयप्पा का अन्य नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है।
अय्यप्पा स्वामी को माना जाता है ब्रह्मचारी
केरल में शैव और वैष्णवों में बढ़ते वैमनस्य के कारण एक मध्य मार्ग की स्थापना की गई थी। जिसमें अय्यप्पा स्वामी का सबरीमाला मंदिर बनाया गया था। इसमें सभी पंथ के लोग आ सकते हैं। ये मंदिर 700 से 800 साल पुराना माना जाता है। अयप्पा स्वामी को ब्रह्मचारी माना गया है, इसी वजह से मंदिर में उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित था जो रजस्वला हो सकती थीं।
सबरीमाला मंदिर का महत्व क्या है?
सबरीमाला भारत के प्रमुख हिंदू मंदिरों में एक है। पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर परिसर में आते हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए तीर्थयात्रियों को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। मंदिर की वेबसाइट के मुताबिक, इन 18 सीढ़ियों को चढ़ने की प्रक्रिया इतनी पवित्र है कि कोई भी तीर्थयात्री 41 दिनों का कठिन व्रत रखे बिना ऐसा नहीं कर सकता।
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