बेणेश्वर मेला: आदिवासियों के कुंभ में शामिल होते है विदेशी

बेणेश्वर धाम में आयोजित मेला आदिवासियों को कुंभ कहलाता है। बेणेश्वर धाम राजस्थान के डूंगरपुर जिले से करीब 60 किलोमीटर दूर है। इस साल 2019 में बेणेश्वर मेला 15 फरवरी को शुरू होगा। मुख्य मेला 19 फरवरी को है। 

बेणेश्वर धाम पवित्र स्थान सोम और माही नदी के पवित्र संगम पर स्थित है। इस धर्मस्थल और यहां आयोजित होने वाले वार्षिक मेले को लेकर बड़ी धार्मिक मान्यता है। हर साल करीब पांच लाख से ज्यादा लोग इस मेले में शामिल होते है। इस मेले की खासियत आदिवासियों की मौजूदगी है। राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात से आदिवासी यहां बड़ी संख्या में पहुंचते है। 

मान्याता है कि यहां भगवान विष्णु के अवतार मावजी ने तपस्या की थी। मावजी आदिवासियों के पूजनीय है। यहीं वजह है कि वे अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करने से लेकर बच्चों मुंडन, जडूला, जात आदि संस्कार बेणेश्वर धाम में आकर करते है। 

फरवरी-मार्च में आयोजित होता है बेणेश्वर मेला


आमतौर पर यह मेला फरवरी-मार्च में आयोजित होता है। माघ में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मेले का आगाज होता है। पूर्णिमा को मुख्य मेला होता है। माघ पूर्णिमा के दिन इस संगम पर स्नान करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। इस वजह से पूर्णिमा के दिन यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते है और पवित्र नदियों के संगम में स्नान करते है।

पर्यटक के लिये खास है राजस्थान का यह मेला 


मेले का मुख्य आकर्षण आदिवासी है। इस दौरान आदिवासियों की संस्कृति यहां नजर आती है। इसे देखने के लिये बड़ी संख्या में ट्यूरिस्ट यहां आते है। ट्रेवल और ट्यूर एजेंसियों ने इस मेले को ट्यूर पैकेज में शामिल करना शुरू कर दिया है। इसे आदिवासियों को कुंभ, वागड़ प्रयाग या वागड़ वृन्दावन भी कहा जाता है। 

यहां प्राचीनतम बेणेश्वर शिवालय, राधा-कृष्ण मंदिर, वेदमाता, गायत्री, जगत पिता ब्रह्मा, वाल्मीकी के प्रसिद्ध मंदिर है। मेले में परंपरागत भजन गायकी प्रसिद्ध है। तानपूरे, तम्बूरे, कौण्डियों, ढ़ोल, मंजीरे, हारमोनियम आदि की संगत पर स्वर लहरियां मेले में जगह—जगह सुनाई देती है। 
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