शिवजी को प्रसन्न करने के लिये करें शिव रुद्राष्टक का पाठ

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये शिव रुद्राष्टक या शिव रुद्राष्टकम का पाठ करना चाहिये। नियमित रूप से ये पाठ करने से जीवन में आशातीत सफलता मिलती है। 



सावन में शिवजी की पूजा का विशेष महत्व है। इसी तरह महाशिवरात्रि पर भोले की पूजा विधि विधान से की जाये तो मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। रामायण में भी श्री राम ने देवों के देव महादेव की पूजा की और रावण से युद्ध में सफलता प्राप्त की। भोले को प्रसन्न करने के लिये शिव चालीसा, शिव रुद्राष्टक, महामृत्युंजय जाप, पंचाक्षर मंत्र आदि का जाप किया जाता है। 


   श्री शिव-रुद्राष्टक 

                                                                          
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥ ३॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रिधाशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापकारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६ ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥ ८ ॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्त्तं विप्रेण हरतोषये ।  ये पठंति नरा भक्यात् तेषां शंभु:प्रसीदति ॥९॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृत श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम्





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