सवाई माधोपुर के 18 गांवों में आखातीज पर नहीं बजती शहनाई, मनाया जाता है शोक


अक्षय तृतीया सबसे बड़ा अबूझ सावा है। इस दिन शादी-समारोह, गृह प्रवेश समेत अन्य कई मांगलिक कार्यक्रमों को आयोजन होते हैं। लेकिन सवाई माधोपुर में चौथ का बरवाड़ा समेत आसपास के 18 गांव में अक्षय तृतीया के अवसर पर शोक मनाया जाता है। 

यह अनोखी परंपरा यहां सैकड़ों सालों से जारी है। अक्षय तृतीया पर इन गांवों में ना तो कोई शादी विवाह होता और ना ही दूसरे मांगलिक कार्य। यहां तक कि मंदिरों में घंटियां भी नहीं बजाई जाती है।  चौथ माता मंदिर में सालों पहले हुई एक दुखद घटना के बाद लगातार शोक मनाने की परंपरा जारी है। जहां पर इस दिन पूरे देश में शादी विवाह की धूम रहती है। वहीं चौथ माता मंदिर सहित सभी क्षेत्र में सन्नाटा छाया रहता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन चौथ माता मंदिर में एक बड़ी दुखद घटना हो गई थी। मंदिर में आए नव विवाहित जोड़े समेत बड़ी संख्या में बारातियों की जान चली गई थी। इसके बाद से ही यहां पर शोक बनाने की परंपरा चली आ रही है। 

इस दिन चौथ माता मंदिर की घंटियां भी बांध दी जाती है। ताकि कोई उन्हें नहीं बजा सके। इसके साथ ही लाउड स्पीकर में आरती भी नहीं बोली जाएगी। लोग घरों में अक्षय तृतीया के दिन ना तेल की कड़ाही चढ़ाते है और  ना ही सब्जियां नहीं बनाते हैं। 

चौथ माता की आँट 

जानकारों के अनुसार, चौथ का बरवाड़ा में महाराज फतेहसिंह के समय राठौड़ वंश के राजा विद्रमा की बारात चौथ का बरवाड़ा गांव में आई थीं। इसी दौरान महाराज विद्रमा के शत्रु राजा ने मौका देखकर बरवाड़ा की बस्ती में आई विद्रमा की बारात पर विशाल सेना लेकर हमला बोल दिया। अचानक हुए आक्रमण से राजा विद्रमा संभल नहीं पाया एवं निशस्त्र होने की वजह से सम्पूर्ण बारात सहित लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। इस घटना के दिन सोमवार का वार एवं अक्षय तृतीया यानि आखातीज का पर्व था। सम्पूर्ण बरवाड़ा क्षेत्र में शोक की लहर छा गई। महाराज फतेहसिंह ने घोषणा कि, यह एक दुर्भाग्यपूर्ण ऐतिहासिक घटना है, मैं शपथ लेता हूं कि आज के दिन से सम्पूर्ण बरवाड़ा सहित एवं बरवाड़ा क्षेत्र के अधीन 18 गांवों में अक्षया तृतीया को विवाह नहीं किया जाएगा और तेल की कढ़ाई तक इस दिन नहीं चढ़ाई जाएगी। साथ मेंसोमवार के दिन अपनी बहुं—बेटियों को अपने ससुराल नहीं भेजा जाएगा। जो इन्ह बातों पर ध्यान नहीं देगा उसे चौथ माता की भक्ति प्राप्त नहीं होगी। यही शपथ आज चौथ माता की आँट (कसम) कहलाती है।

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