वट सावित्री व्रत की कथा, पूजा विधि और महत्व

 

Vat Savitri Vrat : वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए काफी खास होता है। हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। कुछ स्थानों में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भी वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। 

Story, worship method and importance of Vat Savitri fast

इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ कच्चा सूत या फिर सफेद धागा बांधती है। इस साल वट सावित्री व्रत पर शनि जयंती भी पड़ रही है। 

क्यों करते हैं वट सावित्री व्रत?

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने भगवान यमराज को भ्रमित कर उन्हें अपने पति सत्यवान के प्राण को लौटाने पर विवश किया था। इसी के कारण हर साल सुहागिन महिलाएं अपने पति की सकुशलता एवं दीर्घायु की कामना करते हुए वट सावित्री व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष की पूजा करती हैं। ऐसा करने से अच्छा स्वास्थ्य के साथ-साथ लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। 

वट वृक्ष पूजन मंत्र

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।

पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।

वट वृक्ष में तीन देवताओं का वास होता है

मान्यता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है। वट सावित्री व्रत से घर में सुख-समृद्धि के योग बनते हैं और रुके हुए कार्य पूरे होते हैं।

इस विधि से करें वट सावित्री व्रत पर पूजा

वट सावित्री व्रत पर सबसे पहले सुहागिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान जरूर कर लें। इसके बाद लाल रंग की साड़ी पहने और श्रृंगार करें। इस दिन वट वृक्ष के पेड़ के नीचे साफ-सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें।

इसके बाद वट वृक्ष में जल अर्पित करें और धूप, अगरबत्ती आदि जलाएं। अब वट वृक्ष के चारों तरफ सात बार कच्चा धागा लपेटते हुए परिक्रमा करें। अंत में वट सावित्री व्रत की कथा सुनें। पूजा के बाद जो फल, फूल, अनाज और कपड़ा आदि एक टोकरी में रख कर किसी ब्राह्मण को दान कर दें।

वट सावित्री व्रत की कथा

वट सावित्री अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी। सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री भी अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी। 

एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। 

सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें।

यम ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान के रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया।

इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से मृत पति को पुन: जीवित कराया था. तभी से यह व्रत ‘वट सावित्री व्रत’ के नाम से जाना जाता है। वट पूजा से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार तभी से महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।

वट सावित्री व्रत 2024 की तिथि

ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि आरंभ-  05 जून की शाम को 07 बजकर 54 मिनट से

ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि समाप्त- 6 जून को शाम 06 बजकर 07 मिनट पर

वट सावित्री व्रत तिथि- 6 जून 2024 , गुरुवार

पूजन का शुभ मुहूर्त- 6 जून को 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर होगा।

अमृत काल समय- 6 जून को सुबह 05 बजकर 35 मिनट से सुबह 07 बजकर 16 मिनट तक

ज्येष्ठ पूर्णिमा की वट सावित्री व्रत 2024 कब?

वट सावित्री व्रत अमावस्या तिथि को 6 जून को रखा जा रहा है। वहीं ज्येष्ठ पूर्णिमा 21 जून 2024 को सुबह 07 बजकर 31 मिनट से शुरू होकर 22 जून को सुबह 06 बजकर 37 मिनट तक है। इसलिए 21 जून को भी वट सावित्री व्रत रखा जाएगा। पूजा का समय 21 जून को सुबह 05 बजकर 24 मिनट तक सुबह 10 बजकर 38 मिनट तक है।


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