जानिए बुधवार को बहु पीहर और बेटी ससुराल क्यो नहीं जाती?

बुधवार नए काम के लिए शुभ माना जाता है लेकिन, बहुत से लोग इस दिन किसी काम के लिए यात्रा करने से परहेज करते है। कई परिवारों में परम्परा है कि वे बुधवार के दिन बहु को पीहर और बेटी को ससुराल नहीं भेजते। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है। जिसे बुधवार का व्रत करने वाली महिलाएं एक—दूसरे का सुनाती है

बुधवार व्रत कथा (Budhvar Vrat Katha in Hindi)

प्राचीन काल में एक नगर में मधुसूदन नामक साहूकार रहता था। मधुसूदन का विवाह सुंदर और गुणवान कन्या संगीता से हुआ था। एक बार मधुसूदन अपनी पत्नी को लेने बुधवार के दिन अपने ससुराल गया।
मधुसूदन ने पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा तो माता-पिता बोले- 'बेटा, आज बुधवार है। बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते।' लेकिन मधुसूदन नहीं माना। उसने ऐसी शुभ-अशुभ की बातों को न मानने की कह कर संगीता को साथ लेकर वहां से रवाना हो गया। 
दोनों ने बैलगाड़ी से घर लौट रहे थे। तभी कुछ दूरी पर उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया। वहां से दोनों ने पैदल ही यात्रा करने का निर्णय लिया। रास्ते में संगीता को प्यास लगी तो मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बिठाकर पानी लेने चला गया।
थोड़ी देर बाद जब मधुसूदन कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह हैरान हो उठा क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था। संगीता भी मधुसूदन को सामने देखकर हैरान रह गई। वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई।
मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा, 'तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?' मधुसूदन की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है। मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूं। लेकिन, तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?'
दोनों के बीच एक—दूसरे को नकली साबित करने के लिए झगड़ा शुरू हो जाता है। उनका झगड़ा देखकर राहगीर भी रूक गए और पास ही नगर से सिपाही वहां आ गए। सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए। राजा भी कोई निर्णन नहीं कर पाया। संगीता भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी।
राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा। राजा के फैसले पर असली मधुसूदन भयभीत हो उठा। तभी आकाशवाणी हुई- 'मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया। यह सब भगवान बुध देव के प्रकोप से हो रहा है।' मधुसूदन ने भगवान बुधदेव से क्षमा मांगी और भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करने और बुधवार को व्रत करने का प्रण लिया। 
मधुसूदन के प्रार्थना करने से भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया। तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया। राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान हो गए। भगवान बुधदेव की इस अनुकम्पा से राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया।
कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई। बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था। दोनों उसमें बैठकर अपने घर पहुंचे। भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-संपत्ति की वर्षा होने लगी। 

पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता के अनुसार बुध चंद्र को शत्रु मानता है पर चंद्र बुध को नहीं। ज्योतिष में चंद्र को यात्रा का कारक माना जाता है और बुध को आय या बिजनेस का कारक माना जाता है। इसीलिए बुधवार के दिन किसी भी तरह की व्यावसायिक यात्रा पर हानि व अन्य किसी तरह की यात्रा करने पर नुकसान होता है। यदि बुध खराब हो तो दुर्घटना या किसी तरह की अनिष्ट घटना होने की संभावना बढ़ जाती है। 

बुधवार व्रत विधि (Budhvar Vrat Vidhi in Hindi)

अग्नि पुराण के अनुसार बुध-संबंधी व्रत विशाखा नक्षत्र युक्त बुधवार को आरंभ करना चाहिए और लगातार सात बुधवार तक व्रत करना चाहिए। मान्यतानुसार बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले गणेश जी के साथ नवग्रहों की पूजा करनी चाहिए। व्रत के दौरान भागवत महापुराण का पाठ करना चाहिए। बुधवार व्रत शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से भी शुरू कर सकते है। इस दिन प्रात: सभी कार्यों से निवृत्त होकर भगवान बुध की पूजा करनी चाहिए। पूरे दिन व्रत कर शाम के समय फिर से पूजा कर एक समय भोजन करना चाहिए। बुधवार व्रत में हरे रंग के वस्त्रों, फूलों और सब्जियों का दान देना चाहिए। इस दिन एक समय दही, मूंग दाल का हलवा या हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। इस दिन भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है। 

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