आंवला नवमी: व्रत करने से मिलता है अक्षय सुख

कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी Amla Navami या अक्षय नवमी Akshaya Navami के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2017 में आंवला नवमी 29 अक्टूबर, रविवार को है। इस दिन उत्तर भारत में आंवला नवमी और दक्षिण एवं पूर्वी भारत में जगद्धात्री पर्व मनाया जाता है। 

आवंला नवमी का व्रत एवं पूजा संतान प्राप्ति और उसकी सुख समृद्धि के लिए की जाती है। मान्यता है कि आंवला नवमी का व्रत करने से अक्षय की प्राप्ति होती है। इसलिए अक्षय नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है और उसकी परिक्रमा कर रक्षा सूत्र बांधा जाता है। आंवले के नीचे बैठकर महिलाएं आंवला नवमी की कथा सुनती तथा सुनाती है। इसके बाद भोजन किया जाता है। 

आंवला नवमी की व्रत कथा Amla Navami Vrat Katha


प्राचीन काल में एक व्यापारी और उसकी पत्नी थी। उनकी कोई संतान नही थी। व्यापारी दम्पत्ती संतान प्राप्ति के लिए बहुत परेशान था। इसके लिए उन्होंने कई व्रत-उपवास भी किए। एक दिन व्यापारी की पत्नी को किसी ने सलाह दी कि भैरव बाबा के सामने किसी बच्चे की बलि देने से उसके दुख दूर हो जाएंगे। 

जब उसने ये बात पति को बताई तो उसने बलि देने से इनकार कर दिया। संतान की चाह में उसकी पत्नी नही मानी और पति का बताए बिना गांव के एक बच्चे की बलि दे दी। इस पर उसे कई रोग हो गए। यह देखकर वह परेशान हो गई। आखिर बलि की बात उसने पति को बता दी।पति यह बात जानकार बहुत नाराज हो गया। 

पत्नी ने माफी मांगने लगी। पति को उसकी दशा पर तरस आया और उसने अपनी पत्नी को गंगा में स्नान कर सभी पाप धोने की सलाह दी। उसने वैसा ही किया और मां गंगा की आराधना की, इस पर मां गंगा उस पर प्रसन्न हुईं। गंगा माता ने उसे एक बूढ़ी औरत के रूप में उसे दर्शन दिए और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को व्रत रखकर आंवले के वृक्ष की पूजन के लिए कहा। 
व्यापारी की पत्नी ने आवंला नवमी का व्रत किया। इस व्रत के प्रताप से व्यापारी की पत्नी के सभी दुख दूर हो गए और उसे सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।  


आंवला नवमी की कथा  Amla Navami Ki Katha


एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आई हुई थीं। अचानक उनके मन में भगवान शिव और विष्णु की पूजा एक साथ करने का विचार आया। अब समस्या आ गई कि इन दोनों की पूजा एक साथ कैसे हो? तभी लक्ष्मी जी को ख्याल आया कि तुलसी विष्णु का प्रतीक है और बेल या बिल्व भगवान शिव का। बिल्व और तुलसी दोनों के गुण आंवले में पाए जाते हैं। इसलिए उन्होंने आंवले की पूजा की। उन्होंने भोजन बनाकर आंवले के नीचे विष्णु और शिव को भोग लगाया। उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी थी। तभी से आंवला नवमी की परम्परा शुरू हो गई। 

अक्षय या आंवला नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए। चरक संहिता के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला खाने से महर्षि च्यवन को फिर से जवानी यानी नवयौवन प्राप्त हुआ था। आंवले कई गुणों से भरपूर होता है। 


आंवला पूजा का महत्व Amla Navami Puja


आंवला का धार्मिक, सामाजिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी महत्व है। मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिव जी का निवास होता है। ऐसे में आंवले की पूजा से भगवान विष्णु और भगवान शिव प्रसन्न होते है। अक्षय नवमी Akshaya Navami का शास्त्रों में वही महत्व बताया गया है जो वैशाख मास की तृतीया यानि अक्षय तृतीया का है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी Akshaya Navami के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा किया जाता है उनका पुण्य कई-कई जन्म तक प्राप्त होता है। इसी प्रकार इस दिन कोई भी शास्त्र विरूद्घ काम किया जाए तो उसका दंड भी कई जन्मों तक भुगतना पड़ता है 

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