रमा एकादशी की कथा और व्रत (Rama Ekadashi Vrat Katha) कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा एकदशी (Rama Ekadashi) है। रमा एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है। रमा एकादशी दीवाली (Diwali) से पहले आती है। वर्ष 2017 में यानि इस वर्ष रमा एकादशी 15 अक्टूबर, रविवार को है।
इस दिन से दीवाली पर्व की शुरूआत मानी जाती है। रमा एकादशी का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि चतुर्मास की यह अंतिम एकदशी है। भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी जिनका एक नाम रमा भी हैं उन्हें यह एकादशी अधिक प्रिय है, इसलिए इस एकादशी का नाम रमा एकादशी है। इस व्रत में तुलसी की पूजा और भगवान विष्णु को तुलसी पत्ते अर्पित करने का बड़ा महत्व बताया गया है।
रमा एकादशी की कथा और व्रत Rama Ekadashi Vrat Katha
रमा एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है- प्राचीन समय में मुचुकुंद नाम का एक राजा थे। वह बहुत धर्मात्मा और विद्वान थे। मुचुकुंद भगवान विष्णु के भी अनन्य भक्त थे। राजा की एक कन्या थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। उसका विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था।
एक बार शोभन ससुराल आया। उन्हीं दिनों रमा एकादशी आने वाली थी। इस राज्य में सभी एकादशी का व्रत करते थें। जब व्रत का दिन पास आया तो चंद्रभागा सोचने लगी, मेरे पति अत्यंत दुर्बल है और यहां तो सभी लोग एकादशी का व्रत रखते है। शोभन भी परेशानी में आ गया। उसने अपनी पत्नी से कहा कि हे प्रिये! अब क्या करना चाहिए, मैं किसी प्रकार भी भूख नहीं रह सकता हूं। भूखा रहा तो प्राण निकल जाएंगे।
दरअसल मुचुकुंद के राज्य में एकादशी का व्रत करना अनिवार्य था। इस दिन राज्य में मनुष्य और पशु-पक्षी सभी एकादशी का व्रत करते थे। इस स्थिति को देखकर शोभन ने भी व्रत करने का निर्णय किया।
उसने व्रत रख लिया, लेकिन शाम होते-होते वह भूख प्यास से व्याकुल हो उठा। आखिर शोभन के प्राण निकल गए। तब राजा ने उसका दाह संस्कार करवाया, लेकिन चंद्रभागा ने अपने पिता की आज्ञा से अपने शरीर को दग्ध नहीं किया और शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद अपने पिता के घर में ही रहने लगी। उधर, रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ।
एक बार मुचुकुंद नगर में रहने वाले सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा करता हुए देवपुर पहुंचे और उन्होंने शोभन को पहचान लिया। शोभन ने भी ब्राह्मण को पहचान लिया। ब्राह्मण ने पूछा कि आप ने देवपुर कैसे प्राप्त लिया? तब शोभन ने बताया कि कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ, परंतु यह अस्थिर है।
शोभन ने कहा कि मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया था, इसलिए ये अस्थिर है। यदि आप मुचुकुंद की कन्या चंद्रभागा को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है। ऐसा सुनकर उस ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत सुनाया।
इस पर चंद्रभागा कहने लगी हे ब्राह्मण देवता! आप मुझे वहां ले चलो, मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूंगी। सोम शर्मा यह बात सुनकर चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर पहुंचे। वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक किया। ऋषि के मंत्रों के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा दिव्य गति को प्राप्त हुई। इसके बाद वह भी पति के पास देवपुर में पहुंच गई। वहां दोनों के व्रत के प्रभाव से उन्हें अनंत सुख की प्राप्ति हुई।
रमा एकादशी का व्रत कैसे करें Rama ekadashi ka vrat
इस एकादशी व्रत को जो लोग रखते हैं, उन्हें सुबह लक्ष्मी नारायण की पूजा करनी चाहिए और भगवान विष्णु को तुलसी एवं देवी लक्ष्मी की लाल पुष्प से पूजा करनी चाहिए। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करवाकर स्वयं भोजन करना चाहिए।
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