हनुमान चालीसा में छिपे है बजरंग बली के राज


बजरंग बली को संकट मोचक कहा जाता है। यहीं कारण है कि संकट की स्थिति में हनुमान चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है। बजरंग बली के बहुत से भक्त ऐसे हैं जो हनुमान चालीसा का पाठ नियमित करते है। 

श्रीराम के प्रति हनुमान जी के भक्तिभाव और हनुमान जी की खूबियों का हनुमान चालीसा में यशोगान किया गया है। मान्यता है कि इसका पाठ नियमित करने से हनुमान जी प्रसन्न होते है और वे परेशानियों को दूर करते है। कई ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए भी हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है। 


इस पोस्ट में हनुमान चालीसा का अर्थ बताने का प्रयास है— 


श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।


हनुमान जी की स्तुति से पहले गुरु का ध्यान करना चाहिए। मैं गुरु के श्री चरण कमलों की धूल से अपने मन को शुद्ध करके भगवान श्री रघुवीर का निर्मल यशोगान करता हूं। भगवान धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यानि चारों फल देने वाले है। 



बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।


पवन कुमार! मैं आपका स्मरण करता हूं। बुद्धि और बल हीन मानकर मुझे शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए। हे प्रभु! मेरे दुख और दोषों का नाश कीजिए। 


जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥1॥

हे हनुमान जी! आपकी जय हो। आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। तीनों लोकों में आपकी कीर्ति छाई हुई है। 


राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥

पवन देव और अंजनी माता के पुत्र और भगवान राम के दूत आपके समान दूसरा बलवान इस संसार में नहीं है। आप अतुल है यानि आपकी किसी से तुलना नहीं हो सकती। 


महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

हे वीरो के वीर! आप विशेष पराक्रम वाले है। आपके आशीर्वाद से खराब बुद्धि निर्मल होती है और अच्छी बुद्धि वालों का साथ मिलता है। 



कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥


हे प्रभु! आप सुनहरे रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित रहते हैं।

हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥

आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज की जनेऊ शोभायामान रहती है।  


शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥

आप महादेव के अवतार। हे केसरी पुत्र! आपके तेज और महान यश की समूचे जगत में वंदना होती है। 


विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥


आप विद्यावान, गुणी और चतुर है। आप सदा भगवान श्रीराम के काम करने के लिए आतुर रहते है। 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥


हे हनुमान जी! आपको भगवान श्री राम के चरित्र के बारे में सुनकर आनंद होता है। श्री राम, सीता और लक्ष्मण जी सदा आपके हृदय में निवास करते है। 



सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥

आपने अशोक वाटिका में सीता को अपना सबसे छोटा रूप दिखाा वहीं भयंकर रूप दिखाकर लंका को जला डाला। 



भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥


आपने लंका में विकराल रूप धारण किया और राक्षसों का अंत किया। भगवान री रामचंद्र के उद्देश्य को पूरा किया। 

लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥


आप संजीवनी बूटी लेकर आए, जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बचे। अपकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने आपको हृदय से लगा लिया।

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥


श्री रामचन्द्रजी ने भी आपकी बहुत प्रशंसा की और आपको भरत के समान भ्राता का सम्मान दिया। 


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥13॥

श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की आपका यश हजार मुख से सराहनीय है।


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा॥14॥


ब्रह्मा, मुनि गण, नारद समेत सभी देवता आपका अनंत काल से सदा याशोगान करते हैं। 

जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥15॥

यमराज, कुबेर, सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान, पंडित ऐसा कोई भी नहीं हैं, जो आपके यश का पूरी तरह बखान कर सके। 

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥

आपने राजा सुग्रीव पर उपकार किया। उन्हें प्रभु राम से मिलाया। इस वजह से वे राजा बने। 


तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥

विभिषण ने भी आपकी बात मानी। रावण वध के बाद वे लंका के राजा बने। इसे समूचा संसार जानता है। 


जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥


सूर्य हजारों योजन दूरी पर है, लेकिन आपने उसे भी मीठा फल समझकर खा लिया। 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥


यह आश्चर्यजनक ही है कि आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर विशाल समुद्र को लांघ लिया। 

दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥

संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।

राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे॥21॥


श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है और आपकी आज्ञा के बिना प्रवेश संभव नहीं है। यानि कि भगवान श्रीराम की भक्ति भी आपके बिना संभव नहीं है। आपकी प्रसन्नता होने पर ही राम की कृपा संभव है। 

सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥


आपकी शरण में आने पर सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। आपकी जिस पर कृपा रहती है यानि आप जिसके रक्षक है, उसे किसी का डर नहीं रहता। 


आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥23॥


आपके तेज का सामना करने की शक्ति किसी में भी नहीं है। उसका सामना केवल आप स्वयं ही कर सकते है। आपकी गर्जना भर से तीनों लोक कांप उठते है। 


भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥


महावीर हनुमान जी का नाम लेने मात्र से भूत, पिशाच भाग जाते है। 

नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥

आपका निरंतर जप करने मात्र से सभी रोग और कष्ट दूर हो जाते है। 


संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥

हे हनुमान जी! जो व्यक्ति मन, कर्म और वाणी से आपका ध्यान करता है उसे आप तमाम संकटों से मुक्त कर देते है। 


सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥


तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।


और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥


आपकी कृपा से सभी तरह के मनोरथ पूर्ण हो जाते है। उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥

सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग चारों युगों में आपका प्रताप है। आपकी कीर्ति से संसार  प्रकाशमान है।


साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥


आप श्रीराम के चहेते है। आप सदा सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों का नाश करते है। 


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥31॥

आपको माता श्री जानकी से वरदान प्राप्त है। आप की कृपा से आठों सिद्धियां और नौ निधियां प्राप्त हो सकती है। 


राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥


आप सदा रघुपति के पास रहते है और आपके पास राम नाम की जो औषधी है वह आसाध्य रोगों को दूर करती है। यानि आपकी कृपा से राम नाम जपने से शारीरिक कष्ट दूर हो जाते है।  

तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥

आपका भजन करने से प्रभु श्रीराम की प्राप्ति होती है। आपकी कृपा से जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते है।

अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥

आप सदा रघबर के धाम में रहते है और हर जन्म में राम भक्त कहलाते है। 


और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥

हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। ऐसे में अन्य किसी देवता का ध्यान करने की आवश्यकता नहीं रहती।

संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥

हे हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट दूर हो जाते है और सारी पीड़ा समाप्त हो जाती है। 


जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥

हे हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! मुझ पर आपकी उसी प्रकार कृपा बनी रहे, जिस तरह की कृपा मेरे गुरु पर है। 


जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥

जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करता है वह तमाम संकटों से मुक्त होकर सुख की प्राप्ति करता है। 

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥


भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।

तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥40॥

हे हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम के दास रहे है। आप उनके हृदय में निवास कीजिए।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। 
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥


हे पवन पुत्र संकट मोचक! आप मंगल कार्यों के स्वरूप है। आप भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण जी समेत मेरे हृदय में निवास कीजिए। 

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