जया एकादशी: प्रेत योनि से मिलती है मुक्ति

माघ में शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जानते है। इस वर्ष 2019 में जया एकदशी का व्रत 16 फरवरी, शनिवार को है। 

जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को नीच योनि से मुक्ति मिलती है। विधि विधान से यह व्रत किया जाये तो मृत्यु के बाद भूत-प्रेत या पिशाच योनि की प्राप्ति नहीं होती। जया एकादशी के व्रत की कथा और महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। ऐसी मान्यता है।  इस वर्ष 2019 में जया एकदशी का व्रत 16 फरवरी, शनिवार को है। 

जया एकादशी की कथा

नंदन वन में एक बार उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में देवगण मौजूद थें। गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इस उत्सव में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इस दौरान पुष्पवती के नृत्य पर माल्यवान पर मोहित हो जाती है। वह सुध बुध खो बैठा। इससे सुरताल बिगड़ गये। 

इस पर देवराज इन्द्र क्रोधित हो जाते है। वे माल्यवान और पुष्पवती को स्वर्ग लोक से निष्कासित कर पृथ्वी जीवन बिताने का श्राप देते है। उन्हें मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त होती है। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों रहने लगे। एक बार दोनों दुखी थें। उन्होंने भोजन नहीं किया। रात में तेज सर्दी से दोनों की मृत्यु हो जाती है। उस दिन माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। अनजाने में उनसे जया एकादशी का व्रत हो गया। दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया।

देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा। माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। 

जया एकादशी का व्रत 

दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे।

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