खाटूश्याम मेला विशेष: 50 साल में यूं बन गया श्याम बाबा का मेला लक्खी


प्रसिद्ध खाटू श्यामजी मेला में 25 लाख से ज्यादा भक्त बाबा के दरबार में हाजिरी लगाते है। फाल्गुन में यह मेला आयोजित होता है। इस दौरान खाटू नगरी श्याम के रंग में रंग जाती है। चारों ओर श्याम बाबा के भजन और जैकारे सुनाई देते है और निशान लहराते नजर आते है। 

खाटू मेले के दौरान सीकर जिले के खाटू कस्बे में पूरा भारत नजर आता है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आसाम आदि सभी जगह से श्याम भक्त मेले में पहुंचते है। खाटू श्यामजी का मेला आज जिस रूप में आयोजित होता है, पहले इसका रूप ऐसा नहीं था। जानकारी के अनुसार वर्ष 1971 यहां छोटा सा मेला भरा करता था। फाल्गुन में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को दोपहर बाद मेला भरा करता था। एक लकड़ी का झूला कबूतर चौक में लगता था, जिसे दो आदमी हाथ से चलाते थे और बच्चे इसका आंनद उठाते थे। इस दौरान श्याम रथयात्रा आयोजित होती थी। इस रथयात्रा से ही मेले की शुरुआत और समापन हो जाता था। जानकार बताते हे कि इस मेले में उस समय भक्तों की संख्या एक हजार भी नहीं होती थी। यानि एक हजार लोग भी इस मेले में नहीं पहुंचते थे। उस समय यहां बिजली की भी व्यवस्था नहीं थी। मेला बड़ी सादगी से आयोजित होता था। 

मैं जयपुर में रहता हूं। मेरे दादा जी हरिनारायण जी बताते थें कि इस मेले में आने-जाने के लिए कोई विशेष आवागमन के साधन भी नहीं थे। लोग पैदल या बैलगाड़ी, ऊँट गाड़ी से यहां पहुंचते थे। उसमें भी कई दिन लग जाते थे। 

सड़क विकास के साथ बढ़ती गई श्रद्धालुओं की संख्या 

अस्सी के दशक में सड़क सुविधाएं विकसित होने के बाद से श्याम की नगरी में भक्तों की संख्या भी बढ़ने लगी। जानकार बताते है कि 1980 में सड़क बननी शुरू हुई थी। पहली बार रींगस से लांपुआ तक सड़क बनी। इसके बाद के वर्षों में खाटू में सड़क से जुड़ा। वाया रींगस यह जयपुर, झुंझुनूं, सीकर, चूरू, बीकानेर आदि शहरों से जुड़ चुका है। मेले के दौरान जयपुर तथा सीकर से हर आधे घंटे में बस सेवा उपलब्ध है। रींगस में रेलेव स्टेशन है। रींगस तक रेल मार्ग से पहुंचा कर यहां से करीब 18 किमी दूर खाटू धाम बस या अन्य स्थानीय साधन से पहुंचा जा सकता है। 


खाटू धाम में धर्मशालाएं और होटल

खाटू श्याम में कुछ साल पहले पंचायतों अथवा ट्रस्ट द्वारा संचालित धर्मशालाएं थी। सेठों ने अपनी हवेलियां धर्मशालाओं के लिए दान कर दी थी। इनका संचालन ट्रस्ट के पास होता है। जहां नाममात्र की सहयोग राशि पर भोजन और रहने की सुविधा उपलब्ध है। अब तो खाटू धाम में कई होटल और ढाबे और रेस्ट्रोरेंट खुल गए है। जहां आप अपने बजट के मुताबिक रूम्स किराये पर लेकर रह सकते है। यहां होटल खुलने की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी। आज इनकी संख्या हजार को पार कर चुकी है। 


हाईटेक सुरक्षा 

2014 खाटू हाइटेक होने लगा है। खाटूश्यामजी की खुद की वेबसाइट है। हजारों सीसीटीवी कैमरों से नजरें रखी जाने लगी है। कोलकाता से हर दिन 45 क्विंटल फूल मंगवाकर बाबा का शृंगार किया जाता है।


मेले में हो जाता है दो अरब से ज्यादा का कारोबार 


लक्खी मेले के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। इस दौरान यहां हजारों की संख्या में अस्थायी दुकानें सजती है। ऐसे में मेले के दोरान दो अरब रुपए से ज्यादा कारोबार यहां होता है। मेले में आने वाले प्रवासी यहां की कलात्मक चूडिय़ों, आचार व खाटू श्याम की प्रतिमा, तस्वीर और अन्य सामग्री, कलात्मक वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। मेले में आए विभिन्न प्रांतों के लोग व शेखावाटी से जाकर वहां बसे प्रवासी राजस्थानी यहां के ठेठ देशी स्वाद को नहीं भूले है। यहां से कैर, सांगरी, काचरी, ग्वार फली व फतेहपुर का चूर्ण नहीं ले जाना भूलते हैं। इस तरह की खाटूश्यामजी में करीब 55-60 दुकानें है। 


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