पाप मोचिनी एकादशी के महत्व के बारे में धर्म ग्रंथों में विस्तार से उल्लेख मिलता है। इस व्रत को करने से एक अप्सरा को पिशाचिनी योनि से मुक्ति मिली थी। पाप मोचिनी एकादशी कब मनाई जाती है, इसका विधान क्या है, जानते है।
पाप मोचिनी एकादशी का व्रत चैत्र माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को किया जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से समस्त प्रकार के पाप दूर होते है। इस वजह से इसे पाप मोचिनी एकादशी कहते है। एकादशी से एक दिन पहले दशमी को एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग विलास से दूर रखते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवद् कथा का पाठ करना चाहिए। पढ़ने में असमर्थ हो तो सुन भी सकते है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के चतुभुर्ज रूप की पूजा होती है। एकादशी तिथि की रात जागरण से भी कई गुणा फल मिलता है। द्वादशी को प्रातकाल स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें।
पापमोचिनी व्रत की कथा
इस व्रत को करने से अप्सरा के पाप दूर हुए थें। दरअसल एक बार मंजूघोष नामक की अप्सरा भ्रमण करते हुए चैत्ररथ वन में पहुंच गई। यह वन बहुत सुंदर वन था तथा इंद्र, अप्साराएं और देवता आदि यहां भ्रमण के लिए आते रहते थें। चैत्ररथ अनेक ऋषि मुनियों का तपस्थली भी था। यहां च्यवन ऋषि के पुत्र भी भगवान शिव की तपस्या कर रहे थे। उन्हें देखकर अप्सरा मंजूघोष मोहित हो जाती है। तभी वहां से गुजर रहे काम देव को मंजुघोष पर दया आ जाती है। कामदेव अपना प्रभाव दिखाते है। ऋषि पुत्र की तपस्या भंग हो जाती है। वह अप्सरा के साथ रमण करने लगता है।
कई दिन बीत जाते है। एक दिन ऋषि पुत्र की चेतना लौटती है। उसे अपने किए पर पश्चाताप होता है तथा अप्सरा पर क्रोध आता है। ऋषि पुत्र अप्सरा को पिशाचिनी बनने का श्राप दे देते है। अप्सरा दुखी हो जाती है और वह श्राप मुक्ति के लिए प्रार्थना करती है। काफी अनुनय विनय पर इस श्राप से मुक्ति का उपाय बताते है। वह कहते है चैत्र माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी के व्रत से वह पाप मुक्त हो सकती है। मंजघोष ने पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह श्राप मुक्त हो जाती है।
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