शरद पूर्णिमा: चंद्रमा से बरसता है अमृत, दूर होती हैं बीमारियां

आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है। इसे कोजोगार पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कुछ इलाकों में इस दिन कौमुदी व्रत भी किया जाता है। शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा, भगवान विष्णु, लक्ष्मी की पूजा और उनके निमित्त व्रत किया जाता है। 

शरद पूर्णिमा से ऋतु परिवर्तन होता है। शरद ऋतु का आगाज होता है। मौसम में हल्की सर्दी का अहसास होने लगता है। शरद पूर्णिमा के संबंध में कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं भी है। शरद पूर्णिमा का स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा को विधि विधान पूर्वक किए गए अनुष्ठान आवश्यक रूप से सफल होते है।

शरद पूर्णिमा का महत्व  Significance of Sharad Poornima


मान्यता अनुसार पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत है। शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। अत: इस ​रात चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की चांदनी का इस वजह से औषधीय और धार्मिक महत्व है।  

शरद पूर्णिमा की रात्रि के समय खीर को चंद्रमा कि चांदनी में रखकर उसे प्रसाद-स्वरूप ग्रहण किया जाता है। कहा जाता है कि चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा भोजन में समाहित हो जाती हैं और उसका औषधीय महत्व बढ़ जाता है। इसके सेवन से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी इस संबंध में उल्लेख है कि खीर को चांदनी के में रखकर अगले दिन इसका सेवन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। 
खीर के अतिरिक्त काली मिर्च और मिश्री के मिश्रण को भी चांदनी में रखा जाता है। इसकी थोड़ी-थोड़ी मात्रा प्रात:काल खाली पेट नियमित रूप से लेने से नेत्र ज्योति बढ़ने की भी बात कही जाती है।

कुछ जगह खीर में विशेष प्रकार की दवा मिला कर श्वास रोगियों को दी जाती है। इससे श्वास रोग में फायदा होने का उल्लेख आयुर्वेद में है।  

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करके हवन करना चाहिए। विधि विधान से कोजागर व्रत करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा आदि सभी सुख प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा को हाथियों की पूजा करने से समृद्धि प्राप्त होने का भी उल्लेख मिलता है।
Share on Google Plus

About Tejas India

0 comments:

Post a Comment