कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, प्रबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि इस दिन देवता जागते है।
दरअसल, आषाढ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव सो जाते है। देवशयन एकादशी के बाद चार माह के लिए सभी शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है। ये चार मास यानि चतुर्मास देव उठनी एकादशी को समाप्त होते हैं। देव उठनी एकादशी से शुभ कार्य शुरू हो जाते है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयन एकादशी को चार मास की योग निद्रा में चले जाते है। देव उठनी एकादशी को उन्हें इस निद्रा से जगाया जाता है। भगवान को योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के साथ ये श्लोक पढ़कर जगाया जाता है—
उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
संस्कृत बोलने में दिक्कत हो तो ऐसा करें
संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। वर्तमान में इस भाषा का उपयोग करने वालों की संख्या कम हो गई है। संस्कृत बोलने में असमर्थ हो तो उठो देवा, बैठो देवा कहकर श्रीनारायण भगवान को जगाना चाहिए। भगवान को शुभ मुहूर्त में जगाया जाता है।
भगवान विष्णु को जगाने के बाद उनकी षोडशोपचारविधि से पूजा करनी चाहिए। उन्हें भोग फलों और मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। देव उठनी एकादशी का व्रत भी करने से संपन्नता आती है।
तुलसी विवाह Tulsi Vivah
देव उठनी एकादशी को तुलसी एकादशी भी कहा जाता है। दरअसल, इस दिन तुलसी और सालिग्राम भगवान के विवाह की परम्पराएं है। धर्म परायण लोगों का मानना है कि देवउठनी एकादशी को तुलसी और सालिग्राम भगवान का विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
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