ऐसी क्या वजह है जो शादी के बाद पहली गणगौर पीहर में पूजी जाती है

गणगौर पर कई अनूठी परंपरा निभाई जाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है शादी के बाद पहली गणगौर पीहर में मनाने की। विवाहिता अपनी पहली गणगौर सुसराल में न मनाकर पीहर में मनाती है। वे 16 दिन की गणगौर पूजन के बाद ससुराल लौटती है। 



दरअसल, गणगौर शिव और पार्वती की पूजा का पर्व है। विवाहिताएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए और कुंआरी कन्याएं अच्छे वर के लिए गणगौर की पूजा करती हैं। गणगौर की मुख्य पूजा चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को होती है जबकि गणगौर पूजन की शुरुआत होली के अगले दिन यानि धुलंडी से हो जाती है। 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिव और पार्वती ​का विवाह ​महाशिवरात्रि को हुआ था। इसके बाद होली पर पहली बार माता पार्वती अपने पीहर आती है। होली के आठवें दिन भगवान शिव उन्हें लेने के लिए अपने ससुराल आते है तथा इसके आठ दिन बाद यानि चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को वे माता पार्वती को अपने साथ लेकर जाते है। 

इसी मान्यता की वजह से विवाहिता होली पर अपने पीहर आती है और फिर 16 दिन की गणगौर पूजा करती है। माता के स्थान पर ज्वारे उगाए जाते है। आठवें दिन कुम्हार से मिट्टी लाकर शिव और गौरा के प्रतीक ईसर—गणगौर की प्रतिमाएं पूजा के स्थान पर स्थापित की जाती है। सुबह-शाम दोनों वक्त उनकी पूजा की जाती है। मंगल गीत गाए जाते है। मेहंदी लगाई जाती है। 

फिर 16 वें दिन मुख्य पूजा होती है। पूजा संपन्न होने के बाद गणगौर को नजदीक सरोवर में विसर्जित कर दिया जाता है। इसके बाद नवविवाहिता अपने पति के साथ ससुराल लौट जाती है। इस दौरान घर में घेवर आदि व्यंजन बनाए जाते है। कई शहरों में गणगौर पर माता की सवारी निकाली जाती है।



तेजस इंडिया पर Religious Hindi News पढ़िए और रखिये अपने आप को अप-टू-डेट | अब पाइए Culture news in Hindi तेजस इंडिया पर | फेसबुक पर जुडे और रहे अपडेट |

तेजस इंडिया के माध्यम से भारत की संस्कृ​ति से रूबरू कराने का प्रयास यहां किया जा रहा है। कंटेंट इंटरनेट तथा अन्य स्रोतों से जुटाए गए है। हम इनकी पूर्ण विश्वसनीयता का कोई दावा नहीं करते है। यदि किसी कंटेंट को लेकर कोई आपत्ति या सुझाव है तो tejasindiainfo@gmail.com पर मेल करें। 
Share on Google Plus

About Tejas India

0 comments:

Post a Comment