सौजन्य से विकिपीडिया |
वट सावित्री व्रत पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती है। वट सावित्री की कथा सुनने और वट वृक्ष की पूजा से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस साल वट सावित्री व्रत 10 जून 2021 को रखा जाएगा।
देश के अधिकांश हिस्सो में जेष्ठ मास की अमावस्या वट सावित्री पर्व के रुप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से बरगद और पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र होने से व्रत और पूजा का महत्व बढ़ जाता है। भारत के कई स्थानों पर वट सावित्री व्रत को पहले त्रयोदशी से लेकर अमावस्या तक तीन दिन मनाया जाता था। अब ज्यादातर स्थानों पर ये पर्व एक दिन का रह गया।
इस दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर बरगद या पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है। वट वृक्ष को परिपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तियों एवं डाली में भगवान शिव का निवास होता है। पूजा के बाद महिलाएं सती सावित्री की कथा सुनती है और व्रत करती है। कहा जाता है कि सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है।
वट सावित्री की कथा (Vat Savitri Vrat Katha)
बहुत प्राचीन समय की बात है। पृथ्वीलोक पर सत्यवान और सावित्री निवास करते थे। सावित्री की पूजा से प्रसन्न होकर एक दिन देवर्षि नारद ने उन्हें दर्शन दिए। इस दौरान सावित्री ने अखंड सौभाग्य का वर मांगा तो नारद ने कहा कि 'तुम्हारे पति अल्पायु है। यह वचन मैं नहीं दे सकता।' यह सुनकर सावित्री चिन्तित हो गई।
इसी दौरान सावित्री के पति सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगती है। सावित्री वट वृक्ष के नीचे बैठ गई और गोद में सत्यवान को लिटा लिया। तभी वहां यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है और सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जाने लगे। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं।
सावित्री को आता देख यमराज ने कहा कि- 'हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ।'
यम की इस बात पर सावित्री ने कहा- 'जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।'
सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- 'मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी।'
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तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- 'तथास्तु'
सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया।
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