होली का डांडा रोपण के साथ शुभ कार्य एक महीने के लिये टल जायेंगे। 2019 में होली का डांडा 19 फरवरी को रोपा जायेगा।
होली का डांडा रोपण होली के त्योहार से ठीक एक महीने पहले होता है। माघ पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में विधि विधान से होली का डांडा रोपने की परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब डांडा रोपण हो जाता है, उसके बाद विवाह आदि शुभ कार्य नहीं होते।
होली का आगाज डांडा रोपण (Holi ka Danda) से माना जाता है। पहले डांडा रोपण के साथ ही होली की मस्ती शुरू हो जाती थी। आज यह एक केवल परंपरा रह गई है। इस परम्परा को कई जगह अब भी नियमित रूप से निभाया जा रहा है। जिस स्थान पर होली दहन होता है वहां एक बड़ा सा डंडा लगाया जाता है। यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक होता है। एक महीने बाद होली का दहन से ठीक पहले इसे सुरक्षित निकाल लिया जाता है। हालांकि अब अधिकांश जगह यह डांडा होलिका दहन से कुछ देर पहले रोपण कर खानापूर्ति की जाती है।
होलिका दहन चंदे से होता है। इसके लिए चंदा जुटाने का काम भी होली का डांडा रोपे जाने के बाद शुरू हो जाता था। टोलियां मोहल्ले या गांवों में घूम-घूम कर चन्दा तथा होलिका दहन में दहन किए जाने वाले सामान को जुटाती थीं।
होली की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार हिरणकश्यप भक्त प्रहलाद का वध करने के लिए अपनी बहन होलिका के साथ अग्नि स्थान में बैठा देता है। भगवान के आशिर्वाद से प्रहलाद बच जाते है और होलिका जल जाती है। होलिका को अग्नि में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली पर चौराहों पर होलिका दहन होता है और फिर अगले दिन रंग—गुलाल से होली खेली जाती है। भारत की होली विदेशों में काफी फेमस है। इसे देखने के लिये बड़ी संख्या में सैलानी होली पर भारत आते है। यहां पर बृज प्रदेश की होली खास है।
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