इस बार 4 तारीख का है विशेष महत्व

इस महीने की चार तारीख का खास महत्व है। इस दिन व्रत, पीपल की पूजा और नदी स्नान का फल कई गुणा मिलता है।  

माघ माह में आने वाली अमावस्या यदि सोमवार को आये तो उसका फल कई महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। चार फरवरी को माघी अमावस्या है। इसे मौनी अमावस्या कहते है। सोमवार को आने से सोमवती अमावस्या की फलदायक है। ऐसे में इस अमावस्या का विशेष महत्व है। प्रयागराज कुंभ में भी सोमवती अमावस्या को शाही स्नान है। उत्तर प्रदेश सरकार ने शाही स्नान के मद्देनजर खास तैयारियां की है।

मुनि शब्द से ही 'मौनी' की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस अमावस्या को मौन धारण करके व्रत समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या का यह व्रत योग पर आधारित होता है। इस व्रत के करने से इंद्रियों पर नियंत्रण की शक्ति बढ़ती है। मौनी अमावस्या को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा करनी चाहिए। पीपल में आर्घ्य देकर दीप जलाना चाहिए और उसकी परिक्रमा करनी चाहिए। 

मौनी अमावस्या किया जाता है मौन व्रत


सोमवार को पड़ने के कारण सोमवती अमावस्या भी है। सोमवती अमावस्या वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। इस व्रत को अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गई है। 

सोमवती अमावस्या को विवाहित स्त्रियां पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा करती है। इसके बाद वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेटती है। कुछ अन्य परम्पराओं में भँवरी देने का भी विधान होता है। धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढाया जाता है। 

सोमवती अमावस्या की कथा


सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, एक गरीब ब्रह्मण परिवार था। जिसमे पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान थी। गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्रह्मण के घर एक संत आये। वे कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए संत ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। 

इस पर ब्राह्मण दम्पति परेशान हो गये। साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद उपाय बताया। उन्होंने बताया कि थोड़ी दूर स्थित एक गांव है। जहां सोना नाम की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। सोना नामक यह ​महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से सोना की सेवा करने कि बात कही।

कन्या तडके ही उठ कर सोना घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती। सोना अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तडके ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि मांजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं। इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने करने लगी कि कौन है जो तडके ही घर का सारा काम करके चला जाता है। उन्होंने देखा कि एक एक कन्या सुबह आई और सारे काम करने के जानी लगी। सोना ने उसे पकड़ लिया और पूछा कि ​तूम कौन हो और इस तरह छिपकर मेरे यहां काम क्यों कर रही हो। तब कन्या ने सारी बात बता दी। 
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