खाटू नरेश श्याम बाबा की कहानी, इस तरह बने शीश के दानी

खाटू श्याम जी जन-जन की आस्था के केंद्र है। वे कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार है। शीश के दानी, हारे का सहारा, बर्बरीक, मौरवी नंदन, लखदातार उनके प्रमुख नाम हैं। आइए जानते, खाटू नरेश के बारे में हिंदी में पूरी जानकारी—



खाटू धाम राजस्थान के सीकर जिले में है। यहां श्याम बाबा का भव्य मंदिर है। इस मंदिर के प्रति भक्तों में गहरी आस्था है। हर साल लाखों भक्त बाबा के दर्शन के लिये यहां दूर—दूर से पहुंचते है। आस्था का आलम यह है कि कई भक्त तो बाबा के दर्शन के लिये कोलकाता, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान के कोने—कोने से यहां पैदल ही आते है। फाल्गुन मास खाटू धाम के लिये खास महत्वपूर्ण है। इस दौरान यहां सैकड़ों पदयात्राएं यहां पहुंचती है और खाटू नगरी श्याममय हो जाती है। श्याम बाबा की जो सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं बाबा उनकी मनाकामना आवश्य पूरी करते है। 

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श्याम बाबा पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ तथा श्री कृष्ण से सीखी। भगवान् शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये। अग्निदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ था।

महाभारत की बात है। बर्बरीक इस युद्ध में शामिल होना चाहते थे। वे मां के पास आशिर्वाद के लिये पहुंचे और अपनी ईच्छा जताई। युद्ध में जाने से पहले मां ने उनसे वचन लिया कि वे हारे हुये पक्ष का साथ देंगे। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। भगवान श्रीकृष्ण बर्बरीक की वीरता से परिचित थें। वे रास्ते में ब्राह्मण भेष धारण कर बर्बरीक को मिले। उन्होंने तीन बाण से महाभारत जीतने की बात कहकर हँसी उड़ायी। बर्बरीक ने कहा, जीतने के लिये तो एक बाण ही काफी है। तीनों बाणों को प्रयोग किया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। 

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कृष्ण ने उन्हें वहां एक वृक्ष के सभी पत्तों को एक बाण से वेधकर दिखाने की चुनौती दी। दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की। तूणीर से एक बाण निकाला और बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा। एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था। बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। श्री कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा। बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है। ऐसे में अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम बदल जायेगा। 

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कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान माँगने को कहा। ब्राह्मण ने उनसे शीश मांग लिया। बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं मांग सकता है। उन्होंने ब्राह्मण को असली रूप में आने की प्रार्थना की। कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये। 

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श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने का कारण समझाया। उन्होंने कहा कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है। इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अन्त तक युद्ध देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। उनके शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया। जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। शीश का दान उन्होंने फाल्गुन द्वादशी को किया था। इसलिये इस दिन खाटू धाम में मेला आयोजित होता है। उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये। 

श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है। 


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