हिरण्यकश्यप जैसे दैत्य का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह का अवतार लिया। जिस दिन भगवान विष्णु ने यह अवतार लिया था, उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी थी। इस पोस्ट में नृसिंह मंत्र, श्री नृसिंह स्तवः, नृसिंहजी के 10 विग्रह और नृसिंह कथा के बारे में जानकारी दी गई है।
नरसिंह मंत्र
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ।।
(हे उग्र एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ।)
श्री नृसिंह स्तवः
प्रहलाद हृदयाहलादं भक्ता विधाविदारण।
शरदिन्दु रुचि बन्दे पारिन्द् बदनं हरि ।।1।।
नमस्ते नृसिंहाय प्रहलादाहलाद-दायिने।
हिरन्यकशिपोर्बक्षः शिलाटंक नखालये ।।2।।
इतो नृसिंहो परतोनृसिंहो, यतो-यतो यामिततो नृसिंह।
बर्हिनृसिंहो ह्र्दये नृसिंहो, नृसिंह मादि शरणं प्रपधे ।।3।।
तव करकमलवरे नखम् अद् भुत श्रृग्ङं।
दलित हिरण्यकशिपुतनुभृग्ङंम्।
केशव धृत नरहरिरुप, जय जगदीश हरे ।।4।।
वागीशायस्य बदने लर्क्ष्मीयस्य च बक्षसि।
यस्यास्ते ह्र्देय संविततं नृसिंहमहं भजे।। 5।।
श्री नृसिंह जय नृसिंह जय जय नृसिंह।
प्रहलादेश जय पदमामुख पदम भृग्ह्र्म ।।6।।
भगवान नृसिंह के नाम
नरसिंह
नरहरि
उग्र विर महा विष्णु
हिरण्यकशिपु अरी
तीर्थस्थल
नरसिंह अथवा नृसिंहजी के 10 विग्रह
उग्र नरसिंह
क्रोध नरसिंह
मलोल नरसिंह
ज्वल नरसिंह
वराह नरसिंह
भार्गव नरसिंह
करन्ज नरसिंह
योग नरसिंह
लक्ष्मी नरसिंह
छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह
भगवान नृसिंह के प्राकट्य की पौराणिक कथा
राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या की। उसने ब्रह्माजी को प्रसन्न करके अनोखा वरदान प्राप्त किया। इस वरदान के अनुसार, उसे न तो कोई मानव मार सकता था और न ही कोई पशु, न दिन में उसकी मृत्यु हो सकती थी और न ही रात में, न घर के भीतर और न बाहर, न धरती पर और न आकाश में, न किसी अस्त्र से और न ही किसी शस्त्र से। यह वरदान प्राप्त कर उसे अहंकार हो गया कि उसे कोई नहीं मार सकता। वह स्वयं को ही भगवान समझने लगा। उसके अत्याचार से तीनों लोक त्रस्त हो उठे।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसने प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकने के लिए अनेक प्रयास किए लेकिन हर प्रयास उसका बेकार गया। यहां तक कि उसने अपने ही पुत्र के प्राण लेने की भी कोशिश की लेकिन प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। एक दिन जब प्रह्लाद ने उससे कहा कि भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं, तो हिरण्यकश्यप ने उसे चुनौती देते हुए कहा कि अगर तुम्हारे भगवान सर्वत्र हैं, तो इस स्तंभ में क्यों नहीं दिखते?
यह कहते हुए उसने अपने राजमहल के उस स्तंभ पर प्रहार कर दिया। तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नृसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे महल की दहलीज पर ले आए। भगवान नृसिंह ने उसे अपनी जंघा पर लिटाकर उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की।
भगवान नृसिंह ने जिस स्थान पर हिरण्यकश्यप का वध किया, वह न तो घर के भीतर था, न बाहर। उस समय गोधूलि बेला थी यानी न दिन था और न रात। नृसिंह, न पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु। हिरण्यकश्यप का वध करते समय उन्होंने नृसिंह ने उसे अपनी जांघ पर लिटाया था, इसलिए वह न धरती पर था और न आकाश में था। उन्होंने अपने नाखून से उसका वध किया, इस तरह उन्होंने न तो अस्त्र का प्रयोग और न ही शस्त्र का। इसी दिन को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।
नृसिंह जयंती
भगवान नृसिंह का जन्मोत्सव यानि नृसिंह चतुर्दशी, नृसिंह जयंती वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस बार यह तिथि 21 मई 2024 मंगलवार को रहेगी। हालांकि फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को भी नृरसिंह जयंती मनाई जाती है।
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