आमलकी एकादशी: इसलिए होती है आंवले की पूजा और मिलता है यह फल

आमलकी एकादशी के दिन आंवला की पूजा होती है। आमलकी एकादशी फाल्गुन शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है। होली से ठीक पहले होने के कारण इसे रंगभरी एकादशी भी कहते है। 



आमलकी एकादशी का स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद महत्व है। फाल्गुन के बाद ऋतु परिवर्तन होता है। सर्दी की विदाई के बाद गरमी की दस्तक हो जाती है। मौसम में इस बदलाव का असर हमारे स्वास्थ्य पर पढ़ता है। देखा जाए तो आमलकी एकादशी के माध्यम से आंवले के महत्व को स्थापित करने का प्रयास किया गया है। 

आवंला विटामिन का एक अच्छा स्रोत है। कई बीमारियों में आवंले का उपयोग रामबाण है। आंवला दाह, खांसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। 

आंवला नवमी जैसा फल मिलता है


आंवला को आमलकी भी कहते है। मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन इस अमृत समान फल की उत्पत्ति हुई थी। हालांकि कुछ आंवला नवमी के दिन आंवले की उत्पत्ति मानते है। आंवले में ​भगवान विष्णु का निवास माना जाता है और शास्त्रों के अनुसार, एकादशी भगवान विष्णु के निमित्त की जाती है। इस दिन आंवले की पूजा की जाती है। 


आमलकी एकादशी की व्रत कथा


ब्रह्मा जी अपनी उत्पत्ति को लेकर एक बार परेशान हो गए। वे जानना चाहते थे कि उनकी उत्पत्ति कैसे हुई? 

इसके लिए उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या की। जब भगवान विष्णु प्रकट हुए तो ब्रह्मा जी उनके चरणों पर गिर पड़े और रोने लगे। उनके आंसूओं की बूंद जहां गिरी, वहां आंवला की उत्पत्ति हुई। उस दिन एकादशी थी। इस प्रकार से आमलकी एकादशी के दिन जो भी भक्त आंवले के पेड़ की पूजा करेगा उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। 

इस एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। साथ ही आंवले का फल भगवान विष्णु को अर्पित करें और घी का दीपक जलाकर उनका ध्यान करें। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 


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