शाकंभरी शक्तिपीठ: कहीं तिनका भी पैदा नहीं होता तो कहीं हरियाली इतनी की देखते ही हो जाएंगे मंत्रमुग्ध

मां शाकंभरी के देशभर में तीन प्रमुख शक्तिपीठ है। नवरात्रों में यहां माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है। 
shakambari mata 



इन शक्तिपीठों की एक खासियत यहां का प्राकृतिक माहौल है। एक स्थान तो ऐसा जहां चारों तरफ-तरफ नमक ही नमक नजर आता है। दूसरा, इतना हरा-भरा, ... देखते ही मंत्रमुग्ध हो जाएंगे।  शाकंभरी माता के राजस्थान में दो तथा उत्तर प्रदेश में एक प्रमुख स्थान है। तीनों की स्थानों को लेकर भक्तों में बड़ी मान्यता है। कई परिवार माता को अपनी कुलदेवी मानते है और अपनी श्रद्धा के अनुसार, जात-जडूले माता के मंदिर में आकर करते है। 


शाकंभरी को दुर्गा का अवतार माना जाता है, लेकिन माता के ​तीनों शक्तिपीठों की स्थापना को लेकर अलग-अलग मान्यताएं है। शाकंभरी माता का सबसे प्राचीन शक्तिपीठ जयपुर से करीब 100 किमी. है। यहां स्थिति मन्दिर करीब 2500 साल से भी अधिक पुराना है। शारदीय और आसोज दोनों ही नवरात्रों में माता के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त आते है। वैसे तो शाकंभरी चौहान वंश की कुलदेवी है लेकिन, अन्य वंश और कुल के लोग भी पूजते है।

शाकंभरी माता की कहानी

जानकारी के अनुसार, माता ने 100 साल तक इस निर्जन स्थान पर तपस्या की थी। इस दौरान माता महीने में केवल एक बार शाक यानि वनस्पति का सेवन करती थी। इस कारण शाकंभरी नाम पड़ा। 

जब माता की तपस्या पूरी हुई तो यह क्षेत्र निर्जन नहीं रहा। यहां बहुमूल्य संपदा के अ​कूत भंडार बन गए। चारों तरफ हरियाली हो गई। समृद्धि के साथ ही यहां झगड़े शुरू हो गए। तब माता ने यहां बहुमूल्य सम्पदा को नमक में बदल दिया। वर्तमान में करीब 90 वर्गमील में यहां नमक की झील है। चौहान काल में सांभर और उसका निकटवर्ती क्षेत्र सपादलक्ष (सवा लाख की जनसंख्या सवा लाख गांवों या सवा लाख की राजस्व वसूली क्षेत्र) कहलाता था। 


महाभारतकालीन है शाकंभरी माता का यह मंदिर 


मां शाकंभरी का झुंझुनूं में उदयपुर वाटी के पास सकराय में स्थित मंदिर अत्यधिक प्राचीन माना जाता है। महाभारत युद्ध में अपने गौत्र के लोगों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडव अरावली में प्राश्चित कर रहे थे। इस दौरान युधिष्ठिर ने पूजा-अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी, वहीं अब शाकंभरी तीर्थ है। शेखावटी में स्थित इस मंदिर को लेकर बड़ी मान्यता है। यह मंदिर प्रमुख शहर सीकर से करीब 56 किमी दूर है। यहां देवी शंकरा, गणपति तथा धन स्वामी कुबेर की प्राचीन प्रतिमाएं भी है। पास ही जटाशंकर मंदिर तथा आत्ममुनि का आश्रम भी हैं। यहां हरियाली देखते ही बनती है। बारिश के दिनों में लोग यहां पिकनिक मनाने भी आते है। 

पहाड़ और जंगल में विराजती है शाकंभरी 

मां शाकंभरी का तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां माता शाकंभरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी और शताक्षी देवी भी प्रतिष्ठित हैं। कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर दूरी पर है। यहां पर माता शाकंभरी कल-कल बहती नदी की जल धारा, ऊंचे पहाड़ और जंगलों के बीच विराजती हैं।


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