कुंभ की पौराणिक कथा और रोचक बातें

कुंभ मेला 2019 प्रयागराज में 14 जनवरी से शुरू होगा और 4 मार्च 2019 तक चलेगा। ये अर्धकुंभ है। इस दौरान देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग, साधु-संत प्रयागराज पहुंचेंगे। प्रयागराज में इसके लिए व्यापक तैयारियां की गई है। 


देश में चार विशेष स्थान है, जहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर, हरिद्वार और प्रयाग में गंगा नदी के तट पर। सबसे बड़े कुंभ मेले का आयोजन 12 साल के अंतराल पर होता है। छह साल के अंतराल पर अर्द्ध कुंभ होता है। प्रयाग में यह अर्द्ध कुंभ है। 

कुंभ का महत्व और कुंभ से जुड़ी कथायें 


पौराणिक मान्यता के अनुसार, कुंभ का महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर अलग—अलग पौराणिक कथायें प्रचलित है। कुंभ की सर्वाधिक मान्य कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा के श्राप की वजह से इंद्र और अन्य देवता शक्तिहीन हो गये। तब सब देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और सारी स्थिति बताई। 

तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने लगे। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्य उसके पीछे पड़ गये। आखिरकार उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ लिया। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।

इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। युद्ध शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार देवताओं को अमृत पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।


कुंभ कितने होते है?


ज्योतिषि शास्त्रों के अनुसार, देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के बराबर होते है। इस तरह कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं। शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। देवलोक में होने वाले कुंभ देवताओं के लिए होते है। 

कुंभ पर्व का निर्धारण 


जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग बनता है। जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।

  • बृहस्पति के कुम्भ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर हरिद्वार में गंगा-तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। 


  • बृहस्पति के मेष राशि चक्र में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में आने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। 


  • बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रविष्ट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। 


  • बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
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