मंदिरों में प्रवेश द्वार के पास घंटी लगाई जाती है। आरती के समय भी घंटी बजाई जाती है। घर या मंदिर में घंटी क्यों बजाई जाती है? घंटी कब और कितनी बार बजानी चाहिए? जैसे सवालों का उत्तर इस पोस्ट में जानेंगे।
ऐसा माना जाता है कि, अगर आप मंदिर या घर में प्रवेश के समय अथवा पूजा के समय घंटा या घंटी बजाते हैं, तो उससे निकली तरंगों से सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। एकाग्रता बढ़ती है। जो स्वस्थ्य मन और तन के लिए लाभदायक है। इसके साथ ही घंटी, घंटे और धड़ियाल की आवाज से शरीर के सात चक्र सक्रिय होने लगते है। घंटे की आवाज से मस्तिष्क के दाएं और बाएं लोब के बीच सामंजस्य बनता है। यह ध्वनि देवताओं के सिद्धांत को बरकरार रखती है और बुरी ऊर्जाओं को दूर भगाती है।
सृष्टि की रचना में ध्वनि का महत्वपूर्ण योगदान है। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद था, घंटी की ध्वनि को उसी नाद का प्रतीक माना जाता है। घंटी के रूप में सृष्टि में निरंतर विद्यमान नाद ओंकार या ॐ की तरह है जो हमें यह मूल तत्व की याद दिलाता है। घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद यानि आवाज प्रकट होगी। चारों ओर घंटियों की आवाज सुनाई देगी। इसीलिए मंदिर में घंटी लगाए जाने की परंपरा है।
घंटी को कितनी बार बजाना चाहिए?
मंदिर में प्रवेश के वक्त 3 या 5 बार धीरे—धीरे घंटी बजाते हैं। घंटी कभी भी तेजी से, जोर से या बार—बार नहीं बजाते हैं। दूसरा यह कि मंदिर से बाहर निकलते वक्त कभी भी घंटी नहीं बजाते हैं।
गरूड़ घंटी क्या होती है?
गरूढ़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है। इसे गरूड़ इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके शीर्ष पर भगवान गरुड़ की आकृति बनी होती है। भगवान गरुड़ के नाम पर है गुरुड़ घंटी जिस का मुख गरुड़ के समान ही होता है। भगवान गरुड़ को विष्णु का वाहन और द्वारपाल माना जाता है। इस घंटी को बजाने के भी नियम है। प्रात: और संध्या को ही घंटी बजाने का नियम है। वह भी लयपूर्ण। जिन स्थानों पर गरूढ़ घंटी बजती है वहां नकारात्मकता नहीं रहती है। इसे घर में भी आरती के समय बजाया जा सकता है। आरती के समय इसकी भी पूजा की जाती है।
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